शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

दुश्मन तो जरा सी बात पर


दुश्मन तो जरा सी बात पर ऐंठ जाता
यूँ  खाली  हाथ अँधेरे में न घर जाता

उसे तो बस लब  की भाषा आती थी
मेरी खामोशियाँ सुनता तो थक जाता

वो  मुझसे रूठ के चुपचाप ही जाता रहा
मेरी धड़कनों को समझता तो रुक जाता

इस क़दर  शिकायतों की बौछार न करता
वो मेरी आँखों की भाषा गर समझ जाता

वो  जो  उसके  जनाजे  में भी न गया
उसकी  कुर्बानियाँ सुनता तो मर  जाता

वो जो उसकी बात को मस्अला समझती है
बस सलीके से कहती तो हल निकल जाता

वे  क्या  लौटते सारी खुशियाँ लौट जाती
और  एक  उनके आने से घर ऊब जाता

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें