शनिवार, 29 दिसंबर 2018

दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


कागज़ की नाव
मिट्टियों वाला गाँव
बेर के पेड़
कपड़े के शेर
गोबर के गणेश
राजू और महेश
जोड़ी थी कमाल
गुल्ली डंडा में बवाल
बाग़ में लगता मेला
चाट का सजता ठेला
भीड़ का रेलम - रेला
बच्चों का ठेलम – ठेला
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


चवन्नी का दोना
अठन्नी का खिलौना
बुलावे का आना
न्योते का खाना
कुम्हड़ा मना करना
आलू गोभी धरना
खाने में शर्त लगाना
सबसे ज्यादा पूड़ी खाना
फिर शेखी बघारना
जोर से डकारना
खेत – खलिहानों के रास्ते से आना
गली में पहुँच कर जोर से चिल्लाना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


चाय में दूध की मलाई डलवाना
झूठ मूठ रोकर के बात मनवाना
बातों - बातों में दोस्ती हो जाना
बातों – बातों में कट्टी हो जाना
छोटी – छोटी बातों में लफड़ा हो जाना
छोटी ही बातों में झगड़ा हो जाना
अगले ही दिन सब भूल जाना
अरे सुन रिंकू जरा इधर आना
एक जगह आम तोड़ने आज जाना
तोडूंगा मैं तुम बीन कर लाना
पोखर पर भी शाम को है जाना
चुपके से तोड़ सिंघाड़ा है लाना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


रमई काका बहुत हैं ढीठ
पर उनका अमरुद है मीठ
कोई युक्ति बताओ भाई
रमई के अमरुद चुरायी
लग्गन का है पका पपीता
देख के ही लगता है मीठा
बेंचू से जो होय मिताई
तोड़ पपीता घर ले आयी
मटर साम की है गदराई
तोड़ के लाओ होय भुनायी
चेतई के बरात में जाना
दो-दो बार मिठाई खाना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


बारिश में भी ख़ूब भीगना
घर आकर फिर खूब छींकना
अम्मा का फिर खूब डाँटना
अदरक का रस मधु चाटना
अम्मा सुनाएँ बुढ़िया की कहानी
रानी करे उसमें बड़ी मनमानी
बुआ सुनाएँ छोटी परी की कहानी
परी फिर बन जाये राजा की रानी
शादी में होती खूब मनमानी
लड़के के मामा की गजब कहानी
बात – बात पर मामा का रूठ जाना
पीछे फिर फूफा जी का गरमाना
कौन है लड़की का बाप तो बुलाना
पीछे से लडकी के मौसा का आना
भाई साहब कहके धीरे से समझाना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


गुस्सा होने पर किताब फेंक देना
देखते ही देखते मिठाई छीन देना
नदी से जाकर मिट्टी ले आना
दीदी के हाथों फिर घर बनवाना
घर बन जाने पर अपना बताना
गुस्से में लात मार कर भाग जाना
दीदी के हिस्से का गट्टा चुराना
मुँह ढँक के कोने में चुपचाप खाना
स्याही से पाँच – पाँच पैसे बचाना
अठन्नी के जुटने पर बाज़ार जाना
मोनू के संग जाना चाट खाना
तीखा लगे नाक बहे सिसियाना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


इतवार को सुबह राम घाट जाना
रहता हमेशा नहाने का बहाना
सब समझें धरम करम पुन्य है कमाना
अपना तो लक्ष्य एक मेले में जाना
उस दिन दीदी की हाँ में हाँ मिलाना
असली इरादा था मूँगफली खाना
उँगली पकड़ करके मेला घुमाना
गोल-गप्पे प्यार से दीदी का खिलाना
रूठ जाने पर गुब्बारा दिलाना
भीड़ ज्यादा होने पर गोद में उठाना
थक जाऊँ,बाबू - बाबू कहके दुलराना
रास्ते भर जोर – जोर सीटी बजाना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


सुबह – सुबह रोज पाठशाला में जाना
पहाड़ा जो भूले मुंशीजी का चिल्लाना
मुंशी जी का गोल - गोल छड़ी का घुमाना
इधर-उधर झाँक कर बस्ता उठाना
मुंशी जो को “पू” कह करके भाग जाना
शाम को घर पर शिकायत का आना
बाबू जी का कान ऐंठ थप्पड़ लगाना
बिद्या माई की कसम उठवाना
दस बार उट्ठक – बैठक करवाना
हाथ जोड़ मुंशी जी से माफ़ी मँगवाना
फिर प्यार से बाबूजी का समझाना
सम्मान से मुंशी जी से पेश आना
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


शाम को जंगल में नंगे पाँव जाना
घूम - घूम बीन कर मोर पंख लाना
अगले दिन विद्यालय में सबको दिखाना
बिद्या माई आयेंगी बता के रिझाना
रखोगे किताब में तो सब याद होगा
परीक्षा में देख लेना अव्वल नम्बर होगा
दो पुड़िया स्याही में दे दूँगा भाई
दस – बीस पैसे की होती कमाई
हर हप्ते झगड़ा बटन की तुड़ाई
माई झुंझला के करती सिलाई
दाल रोटी देख मन जाता गुस्साई
जोर से चिल्लाता – अचार दे दे माई
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है


खुशी – खुशी गाय चराने ले जाना
धीरे – धीरे हाँक कर नदी ले जाना
मार – मार उसे फिर नदी में घुसाना
पूँछ पकड़ उसकी फिर नदी पार जाना
नदी पार जाकर खरबूजा चुराना
उसी तरह गाय संग फिर लौट आना
दोस्तों के साथ खरबूजे का खाना
खरबूजे के दम पर तारीफ करवाना
झूठ मूठ बुद्धी का लोहा मनवाना
कितना मजेदार बचपन का ज़माना
गलती हमारी शिकायत माँ - बाप से
बच्चा है माफ़ करिए कह रहा हूँ आप से
सब याद आ रहा है
दिल मेरा बचपन हुआ जा रहा है





पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com











  








     


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