गुरुवार, 1 नवंबर 2018

लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है













आज – कल दुश्मनों की तादाद बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है  
दुश्वारियों का क़द ऊँचा होता जा रहा है
आलोचनाओं का स्वर ऊँचा होता जा रहा है
नये नये मुखौटों की तादाद बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

आज – कल जो सोचता हूँ वो होता नहीं है
होता है वो जो कभी सोचा नहीं है
कभी नालियाँ कूदने से डर लगता था
आज-कल बेपरवाह यूं ही फाँद जाता हूँ
दुश्मनों के साथ चाहने वालों की भी संख्या बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

आज-कल अपने रूठ रहे हैं इत्ती सी बात पर
पराये अपने हो रहे हैं बस बात-बात पर
जिन्हें सुहाता न था वर्षो तक फूटी आँख भी
सामने जो पड़ता सिकुड़ जाती नाक भी
आज-कल उनकी भी इनायत बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

अब मैं थोड़ा मीठा हो गया हूँ जाने क्यों
पहले लोगों को मेरा स्वाद अक्सर कड़वा ही लगा
हाँ कुछ गिनती के दोस्तों को मीठा लगता था
अब उन्हें भी कसैला लगने लगा हूँ मैं
इन सबके बावजूद अब थोड़ी-थोड़ी पूछ भी बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

पुराने कट रहे हैं, नये सट रहे हैं
दोस्त भी अब खेमों में बँट रहे हैं
कुछ ज्यादा जल्दी- जल्दी जिन्दगी बदल रही है
हम भी गिरते उठते बढ़ रहे हैं
दुश्मनों की भाषा दोस्तों सी हो रही है
लगता है मेरा भी औकात बढ़ रही है  

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


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