शनिवार, 29 सितंबर 2018

प्रेम पर कुछ मुक्तक


                        

रूप  का  खेल ही प्रेम  होता नहीं
है  वो  आकर्षण  प्रेम  होता नहीं
प्रेम तो दो दिलों का है पावन मिलन
प्रेम यूं ही किसी से भी होता नहीं


चेहरे  से प्रेम जिनका  शुरू होता है
चेहरा ढलते ही वो प्रेम कम होता है
होता है ये मिलन जिस्म की भूख का
भूख मिटते ही सब कुछ मलिन होता है


प्रेम  का  रंग गहरा बहुत होता है
आख़िरी साँस तक संग ये होता है
डरने  मरने  ये  ही  बचाता हमें
प्यार का रिश्ता ऐसा सघन होता है


तुम ही पहले तुम्हीं आख़िरी प्यार हो
तुम  ही तो जिन्दगी के मेरे यार हो
मुझको अपनाओ या त्याग दो तुम मुझे
तुम  ही सब कुछ मेरे मेरे संसार हो


तेरे दिल में ही अब घर बसायेंगे हम
तेरे बिन  ना जियेंगे मर जायेंगे हम
वरना  रह जायेंगे हम आवारा यूं ही
तू  कह  दे फ़कत  मर जायेंगे हम


पुष्प  तू  मैं भ्रमर तू जहाँ मैं वहाँ
प्रेम का तो फलक है ये सारा जहाँ
डर, हवस, दुश्मनी प्रेम में पहलू है
फिर भी चलता रहा प्रेम का कारवाँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें