शनिवार, 15 सितंबर 2018

जेठ दोपहरी सा मैं हो गया था


























जेठ  दोपहरी सा  मैं हो गया था
उखड़ा – अकड़ा सा मैं हो गया था
तुम क्या आयी सावन बन करके
मैं सावन  के  जैसा हो गया था

जीवन में उल्लास आया था
उर ने उर का गीत गाया था
सब कुछ इन्द्रधनुष सा जीवन में
जो ना भाये वो सब भाया था

कैसे से मैं कैसा हो गया था
पहले से कुछ वैसा हो गया था
खुश था इतना बदला कुछ फिर भी
दीवानों के जैसा हो गया था

प्रेम की महिमा सबसे न्यारी है
प्रेम कामना  सब  पे  भारी है
प्रेम का स्वाद चखा जिसने जग में
उसकी बात तो सबसे निराली है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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