सोमवार, 13 अगस्त 2018

सफर कट रहा था
























सफर कट रहा था,ज़िगर कट रहा था
सपनों का इक-इक नगर कट रहा था

किसी को या तुमको मैं क्या-क्या बताऊँ
कहाँ  से  कहूँ  और क्या - क्या सुनाऊँ
कहूँ  मैं  जहाँ  से  वहीं  आँसू  छलके
सोचूँ  कि  हँस  के  या  रो के सुनाऊँ

सफर कट रहा था,ज़िगर कट रहा था
सपनों का इक-इक नगर कट रहा था

सुना के भी क्या कि, ज़मानत मिलेगी
दिल को भी दिल की अमानत मिलेगी
वादों  के  धोखों  में  बिखरी  जवानी
फिर  सच्ची  क्या  जिंदगानी मिलेगी

सफर कट रहा था,ज़िगर कट रहा था
सपनों का इक-इक नगर कट रहा था

 चलो आजमाते हैं  फिर  ज़िंदगी को
चलो  झुठलाते  हैं  खुदकुशी   को
बहुत कुछ सहा है बहुत कुछ सुना है
चलो  आजमाते हैं फिर ज़िंदगी को

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmai.com  

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