मंगलवार, 3 जुलाई 2018

काटे न कटे दिन

























काटे न कटे दिन तो हम रातों को क्या कहें
बातों  में बहुत बात इन बातों  को क्या कहें

हैं दर्द  बहुत से मगर किससे  कहें सुनें
जो देके गये दर्द उन नातों को क्या कहें

आती थी वो जब भी गले बेसाख्ता मिलती
अब छोड़ गयी तो मुलाक़ातों  को क्या कहें

कुछ  भी हो नहीं भूलते वो प्यार वाले दिन
समझे तो कोई वरना ज़ज्बातों को क्या कहें

थे ख़्वाबों वाले दिन और शहनाइयों की रात
ख़्वाबों में लुटी जो उन बारातों को क्या कहें

गुज़रा हुआ ज़माना कुछ दुःख भी देता है
नासूर बन के बैठी सौगातों को क्या कहें

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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