मंगलवार, 3 जुलाई 2018

प्रीत के स्वर








































तुम मिली तो गीत के स्वर उभर आये
तुम जो बोली प्रीत के स्वर उभर आये
प्रेम की पुस्तक का मेरे जब कथानक तुम हुई
दबे सब अनुराग के स्वर उभर आये


तरूणाई की अनमनी सी थी कथा
तुम जो आयी हो गयी हल सब व्यथा
स्फूर्ति नव,नव चेतना,नव रंग जीवन में भरे
हर्ष के सब सुमन झोली में चले आये यथा

प्रेम वो जो क्षण में शव को शिव बना सकता प्रिये
प्रेम वो जो विष को भी अमृत बना सकता प्रिये
प्रेम के परिणाम की दृष्टांत सच्ची मीरा हैं
प्रेम झूठे बेरे भी प्रभु को खिला सकता प्रिये

प्रेम ने मुझ मूढ़ को ये दृष्टि दे दी है प्रिये
लोगों ने यूँ शक्ति से तो युद्ध जीता है प्रिये
किन्तु उर पर विजय पाना है बिना किसी शस्त्र के
फिर तो केवल प्रेम ही उर जीत सकता है प्रिये

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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