मंगलवार, 22 मई 2018

पीड़ा में भी मुस्काने की कला कविता


कवि अपनी पीड़ा,
व्यग्रता, अपने मनोभाव
व्यक्त कर देता है
शब्दों से ...
वे शब्द उसे
ढाल देते हैं
साँचें में कविता के
और कहला कर रचना
सहज ही हो जाती है व्याप्त
न जाने कितने के जीवन में


कवि बच जाता है
मरने से,मारने से, घर में
आपा खोने से,
अपनी सारी हीनताएं
शब्दों को सौंप कर
हो जाता है फ़ारिग,शांत

उनका क्या जो नहीं हैं कवि
पीड़ा को नहीं कर पाते
सहज व्यक्त
करते अंतिम दबाव में
हत्या या आत्महत्या
परिवार में कलह
पत्नी से,पिता से,संतान से
और तो और खुद से भी
आता है क्रोध
उसमें होता है
स्वाहा स्व विवेक
और साथ में
सारी उन्नतियाँ
और आत्मविश्वास


काश ! वे पढ़ते कविता
मिलते कवि के शब्दों से
तो अवश्य बचते
थोड़ा बहुत जीवन में
कवि न होना दुखद नहीं
जीवन में कविता का न होना
जीवन में कविता को न देना स्थान
क्रूरतम है
मनुष्य के लिए घातक
पीड़ा में भी मुस्काने
और चलते रहने की कला
कविता ही तो सिखाती है
कविता ही हमें
बनाए रख सकती है मनुष्य


पवन तिवारी
सम्पर्क -७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com    

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