शनिवार, 20 जनवरी 2018

युवा कथाकार पवन तिवारी के उपन्यास 'अठन्नी वाले बाबूजी' को अकादमी पुरस्कार





मुंबई,कुशल वक्ता,हिन्दी सेवी, युवा साहित्यकार एवं कवि पवन तिवारी को 17 जनवरी 2018 की शाम बांद्रा के रंग शारदा सभागृह में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर एवं महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री विनोद तावड़े के हाथों महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी के कार्य अध्यक्ष नंदलाल पाठक अभिनेता राजेंद्र गुप्ता चिड़ियाघर फेम, अभिनेता अरुण वडोला,विधायक आशीष शेलार, श्रीमती चित्रा देसाई,श्रीमती पुष्पा भारती की उपस्थिति में उनके पहले उपन्यास अठन्नी वाले बाबूजीके लिए वर्ष 2016-17 का जैनेंद्र पुरस्कार प्रदान किया गया । 

कई पुरस्कार
ज्ञात हो कि पवन तिवारी को इससे पहले साहित्य रत्न, साहित्य श्री,पत्रकारिता में आग़ाज शिखर सम्मान एवं सम्वाद शक्ति श्रेष्ठ सम्पादक ,जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। साहित्य की तमाम विधाओं में लिखने वाले पवन तिवारी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जनपद के जहांगीरगंज ब्लॉक के अलाउद्दीन पुर गाँव के रहने वाले हैं.

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वर्ष की उम्र से लेखन
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वर्ष की उम्र से लिखने वाले पवन तिवारी ने साहित्य की तमाम विधाओं में अपनी कलम चलाई है. फिर चाहे वह कहानी हो, कविता हो, नज़्म हो,ग़ज़ल हो, उपन्यास हो, निबंध हो, लेख हो, संस्मरण हो, यात्रा वृतांत हो तकरीबन हर विधा में उन्होंने लिखा है. उनकी चर्चित पुस्तक 'चवन्नी का मेला' एक मील का पत्थर है.जिसे उन्होंने मात्र 23 वर्ष की अवस्था में लिखा था.  अब तक उसके दो संस्करण आ चुके हैं. उसी संग्रह की एक लोकप्रिय कहानी तेरे को मेरे को पर हिन्दी फिल्म का निर्माण भी हो रहा है . 21 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सम्पादक की जिम्मेदारी निभाई. पवन तिवारी ने पत्रकारिता में भी एक उज्जवल मिसाल कायम की है उन्होंने तकरीबन एक दर्जन पत्र पत्रिकाओं का एवं साहित्यिक विशेषांकों का कुशलतापूर्वक संपादन किया. जो उनकी मेधा का प्रतीक है. साथ ही वे फिल्म राइटर्स एशोसिएशन के सदस्य भी हैं . स्वयं के चर्चित ब्लॉग - चवन्नी का मेला पर तमाम विषयों पर कविता नज़्म एवं अन्य विषयों पर गंभीर लेखन करते रहते हैं.वे बेहद कम उम्र में भारतीय प्रकार संघ के कार्याध्यक्ष रहे. आकाशवाणी पर उनकी अवधी रचनाओं सहित हिन्दी साहित्य के अनेक दिग्गजों पर उनके लेख व् वक्तव्य प्रसारित हो चुके हैं .जिनमें महा पंडित राहुल सांकृत्यायन, मैथिलीशरण गुप्त जी,रामधारी सिंह 'दिनकर' जी, बाबा नागार्जुन प्रमुख हैं,3000 से अधिक लेख पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. हिन्दी भाषा के प्रचार- प्रसार के लिए  अनेक संगोष्ठियों में भाग लिए,वक्तव्य दिए तथा लेख लिखे. भजन गंगा का अतिथि सम्पादन, इन्डियन प्रेस कौंसिल की पहली पुरस्कार स्मारिका का  कुशल सम्पादन किया.लघु फिल्म स्ट्रगलर सिंगर में नायक की भूमिका अदा की. हिन्दी भाषा के विकास के लिए देशभर में अनेक यात्राएं की और व्याख्यान दिए.

दूर-दूर तक साहित्य का कोई नाता नहीं

ग्रामीण क्षेत्र में पैदा हुए एवं पले-बढ़े पवन तिवारी एक किसान पिता के मेधावी पुत्र हैं इनके पिता श्री चिंतामणि तिवारी एवं माता श्रीमती श्रीपत्ती देवी बेहद सहज और भक्ति भाव वाली हैं. घर में दूर-दूर तक साहित्य का कोई नाता नहीं था फिर भी पवन तिवारी ने विषम परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए मुंबई जैसे महानगर में बिना किसी सहायता के स्वयं का मार्ग प्रशस्त किया. जो कि एक आम आदमी के लिए प्रेरणा का विषय है.अपेक्षाकृत कम उम्र में अपने पहले ही उपन्यास के लिए अकादमी पुस्कार प्राप्त करना उनकी लेखकीय प्रतिभा को दर्शाता है.
पवन तिवारी को उपन्यास "अठन्नी वाले बाबूजी"के लिए जैनेन्द्र सम्मान प्रदान किया गया। जिसमें स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र, शाल एवं पुष्प के स्थान पर ज्ञानेश्वरी एवं कवि प्रदीप पर एक अमूल्य पुस्तक भेंट के रूप में प्रदान की गयी। 
पवन तिवारी को उनके उपन्यास "अठन्नी वाले बाबूजी"के लिए जैनेन्द्र सम्मान प्रदान किया गया। जिसमें स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र, शाल एवं पुष्प के स्थान पर ज्ञानेश्वरी एवं कवि प्रदीप पर एक अमूल्य पुस्तक भेंट के रूप में प्रदान की गयी।ख़ास बात यह रही कि मात्र 34 वर्ष की उम्र में उन्हें यह पुरस्कार प्राप्त हुआ ,अमूमन ऐसा होता नहीं, जो उनकी लेखकीय उत्कृष्टता को दर्शाता है.
इस अवसर पर दूसरे सम्माननीय साहित्यकारों को भी विभिन्न विधाओं में पुरस्कार दिया गया। 
रमेश यादव, श्रीमती प्रमिला शर्मा आदि सहित मौजूद रहे। उत्साह वर्धन करने के लिए मेरी अर्धांगिनी सीमा तिवारी जी,अनुज हेरम्ब तिवारी, मित्र डॉ तरुण कुमार त्रिपाठी, प्रमोद गौड़, प्रदीप जायसवाल, प्रज्वल वागदरी , राम स्वरूप साहूजी,प्राध्यापक संजय दुबे, संजय पाल, रुस्तम घायल, विमल मिश्र, विजयकांत द्विवेदी सहित आदि सहित की लोग उपस्थित थे।

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