सोमवार, 25 दिसंबर 2017

गरीबी में दोस्त समरथ बाज़ार हो गये


गरीबी में दोस्त समरथ बाज़ार हो गये
हम  उधारी  की  तरह  बेकार हो गये

प्यार के लहजे सभी इतिहास हो गये
लहजा न होके  तेवर  रौबदार हो गये

उनकी ही बात सच्ची उनकी कही सुनें
लब जो खोलें हम तो गुनहगार हो गये

निर्धन के लिए तो , कोई नहीं अपना
ऐसे में सारे  रिश्ते  कारोबार हो गये

गरीबी में हो सके तो रिश्तों से दूर रहिये
जाने  कौन  कह  दे  मक्कार  हो  गये

जब तक न वक़्त लौटे गुम होइए खुद में
आयेगा मज़ा  जिस दिन  सरदार हो गये

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें