गुरुवार, 23 नवंबर 2017

बियाह कटवा






















जब से भगेलू कै बियाह तैं भयल है
जब देखा दोस्तन संग बगियै में जमल है

नयका अँगोछा तब से गंटई में टंगल है
खोब पान खात हवै अपने में रमल है

गाएँ कै जौ पूछै केहु कहिया बियाह है
मुस्की मारि उल्टै पूछै केकर बियाह है

सुनली तौ तोहरै है तूही के पता नाय
कहैं तब भगेलू अबहिन बातचीत चलति है

क्योह भी जौ पूछाला तौ इहै बतावैनै
आवत-जात बाय सब बातचीत चलति है

चाची वोकर कहले हईं केहू से बताया जिन
भेद बहरे जाई नाही घर ही के भेदी बिन


गउवैं कै चुगुली कइके बियाह तोड्वावै नै
आई के दुवारे फिर मुँह बिच्कावैं न

चौराहे पे नात-बात क्योह जौ भेंटाला
बियाहे के जौ पूछै तौ पान खियावैला

 यही के खिया के पान एक दिन मंगरू
बाति ही बाति में कुलि जानि लेहनै मंगरू

दुइय्यै दिन बाद नाऊ भगेलू के घर आयल
लड़की के बापे कै एक चिट्ठी लै आयल

लड़की के मंगरू के पसंद नाहीं फोटो है
देखले में लगत है कदो वोकर छोटो है

लड़की के मामा के जंचत नाही रंग है
यही नाते शादी हम करत हई भंग है


मँगरू कै बाप पढिके गइनै गुस्साई
कवनो सार चुगुली लगाय देहलै माई

दुसरे कै दोष का इहै है निकम्मा
इहै ससुरा कवनों से बकले होई अम्मा

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com




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