शनिवार, 23 सितंबर 2017

वक्त बिन वक़्त का घाव भरता नहीं

वक्त बिन वक़्त का घाव भरता नहीं
कितना भी तुम सिलो ज़ख्म सिलता नहीं

वक्त विपरीत गर श्रम फलित ही न हो
काम होकर भी परिणाम मिलता नहीं

काल हो गर बुरा बेवज़ह रोग हो
वैद्य खोजे बहुत रोग मिलता नहीं

वक़्त की मार तो होती ऐसी भी है
सामने होके भी हमको दिखता नहीं

एक तीली में जो दीप जल जाता था
अब कई तीलियों से भी जलता नहीं

फोन के बजने से था परेशां बहुत
दिन में इक बार "पवन” बजता नहीं

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.com

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