सोमवार, 21 अगस्त 2017

वक्त का खेल


















गरज गुज़र गयी तो फिर जानते नहीं
कौन हो तुम ? तुमको पहचानते नहीं

मैनें कहा दोस्त,बुरे दौर का हूँ दोस्त
उसने कहा - ऐसे किसी जानते नहीं

मैंने दिलाया याद तो उसको बुरा लगा
बोला झिड़क के दूर हटो,जानते नहीं

बदला मेरा क्या वक्त,ख़ास भी बदल गये
अपने मेरे ही मुझको, अब पहचानते नहीं

वक्त बुरा हो तो, कोई नहीं अपना
अपने ही घर के लोग भी पहचानते नहीं

आयेगा अच्छा वक्त इशारा है राम का
दुःख के ही बाद सुख है वे जानते नहीं

दुःख में ही स्वार्थ का असली है रंग दिखता
सच जानकर भी सच को वे मानते नहीं

पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.com


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