बुधवार, 5 जुलाई 2017

आदमी से वफा की अपेक्षा ही क्या

















अपने दुःख को ही दुःख जग ने समझा सदा 
दूसरों के दुखों को वो समझा है क्या
दुःख में जब खुद पड़ें तभी कहते हैं
मेरे दुःख को कोई और और समझेगा क्या

जो भी कमजोर उसको सताते सभी
सक्षम को जग में कोई सताता है क्या
दीप को ही बुझाती सदा है पवन
जलते घर-झोपड़ों को बुझाया है क्या

आदमी से वफा की अपेक्षा ही क्या
जब वफा पर हैं कायम नहीं देवता
आँधियों ने उजाड़े कई झोपड़े
पर महल को कभी भी उजाड़ा है क्या

पवन तिवारी
सम्पर्क -7718080978

poetpawan50@gmail.com

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