सोमवार, 6 मार्च 2017

तुम मिली तो जिन्दगी भी ख़ूबसूरत हो गई.
























सोंच ही रहा था कि जिन्दगी कितनी बेतरतीब हो गई.
कि तभी तुम मुस्कुराई और ग़ज़ल हो गई.

सोंचा न था कभी जिन्दगी ऐसी भी हो सकती है. 
तुम मिली तो जिन्दगी भी ख़ूबसूरत हो गई. 

न हुई थी मोहब्बत तो पर्दे में रहा करती थी. 
मोहब्बत क्या हुई कि सरे बाज़ार बेपर्दा  हो गई.

बड़े शरीफ बने फिरते थे जमाने में.
ख़ूबसूरती जरा क्या देखी शरारत हो गई. 

ये मोहब्बत - वोहब्बत  क्या है और भी काम हैं जमाने में. 
जब हो गई मोहब्बत बेसाख्ता बोले कुछ करो यारों इन्तहा हो गई.

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