बात अच्छी नहीं कुछ भी बोलना
पहले तुम सोंचना बाद लब खोलना
दूसरों की उड़ाई है खिल्ली बहुत
अपने ऐबों पे भी जरा लब खोलना
वादे करने निभाने में अंतर बहुत
सच को कहने में भी लगती ताक़त बहुत
अपनी शर्तों पे जीना है आसाँ नहीं
इसकी कीमत चुकानी है पड़ती बहुत
छूट जाते हैं रिश्ते कई राह में
नफरतें मिलती हैं ऐसे बाज़ार में
स्वाभिमानी को तो ठोकरें मिलती हैं
कांटे ही कांटे है ऐसे बागान में
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