गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

बाल कविता- मैं पवन हूँ

   










 ''मैं पवन हूँ''


लाख कोशिश कर चुके,
पर मैं नज़र नहि आ सका.
कौन है? कैसा है ये?
इसके तन का स्वरुप क्या है?
एहसास करके ही सभी,
संतोष करते हैं सभी.
गर्मियों की चिलचिली धूप में,
जब छाँव में राही रुका
एक झोंका चल गया,
पत्ते-पत्ते हिल गये
मस्तक के सारे पसीने,
झट से गायब हो गये
दूसरा कोई नहीं वह


‘मैं पवन हूँ’


जब ऋतुराज बसंत है आता
वृक्षों में नूतन पात है आता
हरे-हरे पत्ते जब,
हँस-हँस कर लहराते हैं
रंग-बिरंगे कुसुम,
जब सुगंध बरसाते हैं.
खुशबू बिखरे,पौधे झूमें
फूली सरसों लहरा उठे
उस लहर में दूसरा कोई नहीं वह

‘मैं पवन हूँ’ 



पवन तिवारी ,सम्पर्क -7718080978 / 9920758836

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