बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

जाटों नेंअपने ही घर की इज्जत लूट ली .क्या आप ने सीरिया को हरियाणा में नहीं देखा ?






हरियाणा के अलग - अलग स्थानों  की तसवीरें अलग - अलग संचार माध्यमों से प्रसारित होकर आम भ्रारतीय तक पहुँच रही हैं. उसे देखकर  संवेदनशील लोगों  का कलेजा मुंह को आ जा रहा है . कुछ लोग क्रोध , कुछ  क्षोभ, कुछ करुणा और कुछ बेबसी के भाव पीड़ित हो रहे हैं कईयों की आखें नम हो गई पीड़ितों की मर्मान्तक खबरें पढ़कर, देखकर , किसी के सामने उसके घर में आग लगा दी गयी. विरोध करने पर उसे उसी जलते घर में फेकं दिया गया. किसी की आखों के सामने उसकी बहन को घसीटा , गया, किसी के ढ़ाबे को उसकी आखों के सामने खंडहर बना दिया गया और वह अपना बर्बाद होते हुए ढ़ाबे को देखकर बेहोश हो गया. किसी के बेटे को जलती आग में झोंक दिया गया.कहीं बसों से महिलाओं को उतारकर ढ़ाबो और खेतों में लेजाकर बलात्कार किया गया. पुलिस तमाश बीन रही, किसी की मिठाई की दूकान उसकी आखों और एसपीके कोठी के सामने होते हुए भी फूंक दी गयी और एसपी का दरबान जलती दुकान देखकर अंदर चला गया. जिन्होंने सीरिया की अराजकता नहीं देखी वे हरियाणा की मनुष्यता को शर्मशार करने वाली अराजकता को देखकर महसूस कर सकते हैं.
 जाटों ने अपने ही घर की इज्जत लूट ली  .
पढ़िए कुछ मर्मान्तक हरियाणवी दास्तान
सोनीपत के मुरथल के पास नेशनल हाईवे-1 सोमवार को लगे जाम के दौरान महिलाओं के साथ गैंगरेप की घटना चर्चा में है। सोमवार तड़के कुछ गाड़ियों को रोका गया। उनमें सवार महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। चश्मदीदों के मुताबिक 10 महिलाओं का यौन शोषण कर उन्हें खेतों में छोड़ दिया गया। इससे भी खौफनाक यह कि जिला प्रशासन ने यहां भी पीड़ितों और उनके परिवारों को ‘अपने सम्मान की खातिर’ रिपोर्ट दर्ज न कराने को कहा।
  बीते सोमवार तड़के 30 से अधिक बदमाशों ने एनसीआर की तरफ जाने वालों को रोका, उनके वाहनों को आग लगाई। कई लोग जान बचाकर भागे, लेकिन कुछ महिलाएं नहीं भाग पाईं। उनके कपड़े फाड़ दिए गये और उनके साथ बलात्कार किया गया। इस खौफनाक वारदात की पीड़ित महिलाएं तब तक खेतों में पड़ी रहीं जब तक कि उनके पुरुष रिश्तेदार और गांव हसनपुर और कुराड के लोग कपड़े और कंबल लेकर नहीं आ गए।
नाम उजागर न करने की शर्त पर एक चश्मदीद ने बताया-’तीन महिलाओं को अमरीक सुखदेव ढाबे पर ले जाया गया, जहां वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में अपने परिजनों से मिलीं। जिला प्रशासन के अधिकारी भी आ वहां गए, लेकिन मामले की जांच या पीड़ितों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के बजाय परिजनों पर महिलाओं को घर ले जाने का दबाव बनाया गया। कई को वाहन भी उपलब्ध कराए गए।’
9 दिन में 28 लोगों की मौत
वहीं हिसार में प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीजीपी यशपाल सिंघल ने बताया कि जाट आरक्षण में भड़की हिंसा की आग में 9 दिनों में 28 लोगों की मौत हुई। उन्होंने बताया कि इस दौरान पुलिस ने 535 उपद्रवियों पर मामले दर्ज किए हैं। वहीं 127 को गिरफ्तार भी किया है। उल्लेखनीय है कि दो दिन पहले प्रशासन 19 मौतों की पुष्टि कर रहा था।

अब कैथल की कहानी सुनिए  वहां के एक दुकानदार की ज़ुबानी
 मेरी दुकान एसपी की कोठी के ठीक सामने है। हर वक्त यहां पीसीआर खड़ी रहती है। मैं रविवार सुबह दस बजे दुकान के काउंटर पर खड़ा था। दो बदमाश हाथों में कुल्हाड़ी लिए मोटरसाइकिल पर आए। चेताया-दुकान बंद नहीं की जला देंगे। धमकियां 18 फरवरी से ही मिल रही थी। तुरंत दुकान को बंद कर मालिक सभी कारिंदे घर भेज दिए गए। पुलिस को इसकी शिकायत कर दी। पूरे शहर को पता था कि सैनी समोसे वाले की दुकान टारगेट पर है।
रविवार रात को करीब सवा 11 बजे पीसीआर वहां से हट गई। साढ़े 11 बजे करीब 30 युवाओं की टोली पहुंच गई। शटर तोड़कर पहले मिठाई लूटी। जमकर तोड़फोड़ की और दुकान को आग के हवाले कर दिया। बदमाशों की आवाज सुनकर आसपास शहर के करीब 100 लोग एकत्रित हो गए थे। एसपी की कोठी के सामने जो संतरी था, उसने बाहर झांका तक नहीं। पुलिस कंट्रोल रूम पर फोन किया। लेकिन आधा घंटा तक कोई नहीं आया। ऐसा नंगा नाच जिंदगी में पहली बार देखा है। मेरा परिवार किसी राजनीति पार्टी से नहीं जुड़ा है। न ही किसी से हमारी दुश्मनी है। मेरे परिवार का कोई भी सदस्य किसी धरने प्रदर्शन में शामिल नहीं हुआ। इसके बावजूद भी हमें टारगेट बनाया गया। तीस साल की मेहनत से कारोबार जमाया था, पल में ही बर्बाद कर दिया।
  उपरोक्त दुखद कथा दुर्गामिष्ठान भंडार के संचालक बाबूराम सैनी की आत्मकथा
पुलिस ने एक सुनी, 10 मिनट बाद दुकान लुटी
 अब कोकरनाल रोड की कहानी

शनिवार कोकरनाल रोड पर बैठे आंदोलनकारियों ने मुझे दुकान जलाने की धमकी दी। मैं दोपहर को दुकान बंद कर सीधा पुलिस थाना पहुंचा। पुलिस कर्मचारियों ने कहा कुछ नहीं होगा घर जाओ। लेकिन मैं डरा हुआ था। रात होने तक मैं दुकान के आसपास ही रहा। रात को घर चला गया, लेकिन नींद नहीं आई। मेरा घर दुकान से थोड़ी दूरी पर नया बस अड्डा के पीछे है। रात को मैं चार बार दुकान को देखने के लिए आया। सबकुछ ठीक था। सुबह हुई मैं दुकान के सामने सड़क पार झाड़ियों में बैठ गया। पास में ही करनाल रोड पर कुछ दुकानों में आग लगा दी। मैंने तुरंत कंट्रोल रूम में फोन किया। फोन पर जबाव मिला-एसएचओ को फोन करो। हनुमान वाटिका के सामने फोर्स खड़ी थी। उनके सामने गिड़गिड़ाया। मेरी दुकान को बचाओ , इसे भी जलाएंगे। लेकिन मेरी बात किसी ने नहीं सुनी।
मैं वापस जाकर झाड़ियों में छुप गया और ठीक दस मिनट बाद मेरी दुकान को तहस-नहस कर दिया गया। मेरी आंखों के सामने ही मेरी बीस साल की मेहनत पांच मिनट में बर्बाद हो गई। मैं पास जाता तो भीड़ मुझे भी निशाना बना सकती थी। इसीलिए मैं दुकान पर नहीं गया। अगले महीने लड़की की शादी है, शहर से सामान लाने के लिए तीन लाख रुपए भी आनन-फानन में दुकान में रह गए।
उपरोक्त दुखद कथा  कहानी झाड़ियों में छुपकर जान बचाने वाले मिष्ठान भंडार संचालक हरिकेश की जुबानी
 अब सोनीपत की कहानी
हरियाणा में मन्नत ग्रुप के चेयरमैन देवेंद्र कादियान ने आंदोलन के दौरान हुए उपद्रव को बयान किया। उन्होंने कहा कि तीन दिन में जो कुछ हमने यहां देखा, वह इंसानियत की हत्या के अलावा कुछ नहीं कही जा सकती। महिलाओं के साथ जो लूट हुई वह आंदोलन नहीं था। मैंने अपनी आंखों से सीरिया जैसा मंजर देखा है। अब कोई नहीं रुक रहा ढाबों पर...
- जिन लोगों के साथ यह घटना हुई, या जो लोग इस आंदोलन के दौरान फंसे रहे। जिनके वाहन जलाए गए, वे शायद ही अब दोबारा यहां आएं।
- इस विश्वास को बहाल करना आसान नहीं। आज ढाबों पर कोई नहीं रुक रहा है।
ट्रक चालक बोले-जम्मू में कर्फ्यू तो लगते हैं लेकिन पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान नहीं पहुंचाते

- पानीपत के टोल प्लाजा पर कई ट्रक खड़े थे। शीशे टूटे कई ट्रक दिल्ली से पानीपत की ओर आ रहे थे।
- जम्मू-कश्मीर निवासी तौसीब, इशफाक, खुर्शीद से पूछा तो जवाब मिला, साहब जी सेब से लोड 8 ट्रकों में से दो उपद्रवियों ने जला दिए।
- हम पानीपत लौट रहे हैं। सब्जी मंडी में पहुंचे तो बताया श्रीनगर में आए दिन ऐसे कर्फ्यू लगते हैं।
- पब्लिक प्रापर्टी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। सारा सेब बर्बाद हो गया है।
- अम्बाला से दिल्ली तक सेबों से भरा 1000 ट्रक फंसा है। 24 घंटे में पहुंचाना होता है, लेकिन 7 दिन बीत गए हैं। अब कुछ नहीं बचा।
 आइये अब पानी पत की दारुण कथापढ़ते हैं
हैपानीपत हरियाणा में चल रहे जाट आंदोलन के हिंसक रूप की वजह से लोग खौफ में जी रहे हैं।यहां ना महिलाएं सुरक्षित हैं और ना ही बच्चे। आरक्षण की आग में सैकड़ों लोगों के अरमान जल गए हैं। दुकानें लूट ली गईं, कई बेघर हो चुके हैं। जानिए क्या सुनाई लोगों ने आपबीती...
दुकान के साथ जल गए अरमान
- आरक्षण के नाम पर उपद्रवियों ने पहले दुकानों को लूटा और उसके बाद आग के हवाले कर दिया।
- पूर्व सीएम हुड्‌डा के आवास के पास डी-पार्क के सामने अरोड़ा फैशन शॉप में भी उपद्रवियों ने लूट के बाद आग लगा दी थी।
- शॉप संचालिका अनीता अरोड़ा सोमवार को जब वहां पहुंची तो हालात देखकर फूट-फूटकर रोने लगी।
- रोते हुए उन्होंने बताया कि पाई-पाई जमाकर दुकान को खड़ा किया था।
- लेकिन आरक्षण की आग ने सभी अरमानों को खाक कर दिया।
दो दिन तक रुकी रही बरात
- कालवा गांव के कमल ने बताया कि उसके घर तीन बेटियों का सामूहिक विवाह कराया गया।
- इसके लिए 19 फरवरी शुक्रवार को बरात गन्नौर से आई।
- दोपहर में बरात पहुंची और खान-पान के बाद शादी पूरी हो गई।
- शाम को पता चला कि जाट आंदोलनकारियों ने सभी रास्तों पर पेड़ काटकर उन्हें ब्लॉक कर दिया है।
- बरातियों की सुरक्षा को देखते हुए लड़की वालों ने बरातियों को भेजना खतरे से खाली नहीं समझा।
- 2 दिन तक बरात चौपाल में ही ठहरी रही और उनके खाने-पीने व सोने का सारा प्रबंध कर दिया।
- रविवार दोपहर को लड़की के परिजनों ने बरात को खाना खिलाकर विदा किया।
60 बाइकों का इंतजाम...
- कमल ने बताया कि बरात को तीसरे दिन रविवार को वापस पहुंचाने के लिए गांव से करीब 60 बाइकें बुलाई।
- प्रत्येक बाइक वाले को एक चक्कर छोड़ने पर दो सौ रुपए किराए के रूप में दिए।
- जबकि रात को दूल्हे- दुल्हनों को एक कार के जरिए गांवों व खेतों के रास्ते पहुंचाया गया।
- कमल ने बताया कि जब बरात पहुंच गई तब उन्होंने राहत की सांस ली है।
पथराव में घायल महिला और बच्चे...
- फरीदाबाद में तोड़फोड़, लाठीचार्ज और पथराव में महिला व बच्चों समेत 20 लोग जख्मी हो गए।
- जगह-जगह जाम और पथराव की घटनाएं दिनभर होती रहीं।
- आंदोलनकारियों ने नेशनल हाईवे-2 (दिल्ली-आगरा) और रेलवे ट्रैक पर कब्जा जमा लिया।
- आंदोलनकारियों ने 2 जगहों पर रेलवे ट्रैक पर कब्जा कर लिया।
दिल्ली-आगरा-मुंबई रूट टूटा...
- दिल्ली-आगरा रेलमार्ग सुबह से शाम तक पूरी तरह बाधित रहा।
- दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग पर चलने वाली करीब 400 ट्रेनें और मालगाड़ी यहां-वहां फंसी रहीं।
- जाम लगाने वाले उपद्रवियों ने प्राइवेट गाड़ियों में तोड़-फोड़ भी की और पुलिसबल पर पथराव किया।
- दोनों जगह पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
- देर शाम विरोध करने वाले लोग रेलवे ट्रैक से हट तो गए, लेकिन रेलवे सुचारू नहीं हो पाया था।
दोलन के नाम पर लूट:कहीं घर पहुंचने की जल्दी तो कहीं भीड़ के आगे बेबस मां
राई गांव की रीतू बेटे का इलाज कराना चाहती थी पर आंदोलन के कारण दवा नहीं दिला पाई।
राई गांव की रीतू बेटे का इलाज कराना चाहती थी पर आंदोलन के कारण दवा नहीं दिला पाई।

अब हिसार कथा
लोगों को इलाज के लिए दवा तक लेने में परेशान होना पड़ा। मां की बेबसी, चाहकर भी  नहीं दिला सकी बेटे को दवा...
राई गांव की रीतू त्यागी, शनिवार को बेटे यशवंत का इलाज कराने को दिल्ली के लिए निकली।
जैसे-तैसे कर वह कुमाशपुर तो पहुंच गई। लेकिन जाम लगाकर प्रदर्शन कर रहे लोगों ने उसे आगे नहीं जाने दिया ।
 भीड़ के आगे बेबस मां अपने बच्चे का इलाज भी नहीं करा पाई।
आंदोलन के नाम पर लूटपाट
रोहतक के बाद झज्जर-बहादुरगढ़, सोनीपत, गोहाना में भी आंदोलन के नाम पर भीड़ द्वारा जमकर लूटपाट की खबरें हैं।
 सोनीपत में हल्दीराम रेस्टोरेंट को लूटा। सिरसा में उपद्रवी एटीएम उखाड़ ले गए, जिसमें साढ़े चार लाख रुपए की नकदी भरी थी।
रोहतक में नारायणा कॉम्पलेक्स में लैपटॉप की दो दुकानों से मोबाइल व लैपटॉप लूटे गए।
 झज्जर में तो वीटा का मिल्क बूथ भी नहीं छोड़ा।
 शुक्रवार रात को कर्फ्यू लगने के बाद लूटपाट की घटनाएं ज्यादा हुईं।
 लूटपाट करने वालों में युवाओं की टोलियां शामिल थीं। पहले शोरूमों के शटर तोड़कर लूटपाट की गई, फिर आग के हवाले कर दिया।

 अब सिवाह कथा
सिवाह में एनएच जाम के दौरान सभी वाहनों को टोल प्लाजा पर ही रोक दिया गया। हाईवे पर टोल से होकर 42 हजार के करीब वाहन हर दिन निकलते हैं। शहर के अंदर 80 हजार से अधिक वाहन सड़कों से गुजरते हैं। इन्हें वापस चंडीगढ़ या दिल्ली की तरफ ही लौटना पड़ा।
 अब झज्जर की कथा
रियाणा में जाटो को आरक्षण देने की घोषणा के बाद हालात सामान्य होने लगे हैं। लेकिन अब सामने आ रहा है बर्बादी का वो मंजर, जिसे आंदोलन ने अपने पीछे छोड़ दिया। मंगलवार को कोई सीएम से गुहार लगाता दिखा तो कोई करोड़ों के कारोबार को राख में मिला देख रोता नजर आया। बर्बादी की दास्तान बयां करते लोग...
 रमेश बिरला और ओमप्रकाश बिरला। दोनों भाई 35 साल पहले चाय की छोटी से दुकान बस स्टैंड के ठीक सामने चलाते थे।
एक भाई चाय बनाता था और दूसरा ग्राहकों को चाय परोसता।
 चाय बनाकर अपने परिवार का गुजारा करने की जिम्मेदारी में ये दोनों भाई मिडल स्कूल तक भी नहीं पढ़ सके।
 इनकी मेहनत रंग लाई और जिस जगह ये चाय की दुकान 300 रुपए किराए से चलाते थे वो 15 साल पहले एक-एक पाई जोड़कर ढाई लाख में खरीद ली।
दुकान खरीदने के बाद एक भाई गारमेंट्स तो एक ने शूज की दुकान खोली। कुछ ही वक्त में उनकी मेहनत रंग लाई और वे शहर के प्रमुख कारोबारियों में शुमार किए जाने लगे।
आरक्षण में सबकुछ बर्बाद
 जाट आरक्षण की आग में दोनों भाई करोड़पति से खाकपति हो गए हैं।
 रमेश की रेडीमेड गारमेंट्स का शोरूम और साथ ही ओमप्रकाश का शूज शॉप भी आग की भेंट चढ़ गया।
 पल भर में इनका शोरूम जलकर राख हो गए। रमेश का कहना है कि इतना आतंक उन्होंने कभी फिल्मों में नहीं देखा,जितना खुद महसूस किया है।
 अब दोनों भाइयों के परिवार में मातम जैसा माहौल है।

उपरोक्त कहानियाँ  भास्कर,पत्रिका जैसे अखबारों व अन्य जनसंचार माध्यमो की सुचना पर आधारित

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

आखिर आरक्षणासुर का वध ....?


 आज मैं  आरक्षण की बात करूँगा पर आंकड़ों और इतिहास की बात नहीं करूँगा.कुछ और बात करूँगा बतौर आम भारतीय. आरक्षण एक बेहद ख़तरनाक राष्ट्रनाशक हथियार बन चुका है . भारत के लिए हाईड्रोजन बम से भी खतरनाक शक्ल अख्तियार कर चुका है. अभी आरक्षण के छोटे - छोटे बम फूट रहे हैं,पर क्या कभी किसी भारतीय ने ध्यान दिया कि इन आरक्षणवादी आंदोलनों से देश का कितना  आर्थिक,  सामाजिक और जीवन की हानि हुई है. आतंकवादी हमलों से कई हजार गुना हानि इन आरक्षण के आंदोलनों से हुई है, खासकर भारतीय रेल जो ऐसे आंदोलनों में इस मुहावरे की तरह हो जाती है  '' गरीब की बीवी गाँव भर की भौजाई''.
 खैर क्या कभी इस पर कोई राष्ट्रव्यापी चर्चा हुई.नेताओं या मीडिया नामक सामाजिक विश्लेष्ण के ठेकेदारों  ने इस पर कोई सर्वे किये. कि इन आंदोलनों में विगत 10 या 15 वर्षों में कितने लोगों ने जान गंवाई. कितने लोगों नें इन आंदोलनों के कारण अपनी छत गंवाई, कितने लोग अपंग या घायल हुए, कितने लोगों का जीवन और व्यापर नष्ट हो गया और उनकी आने वाली पूरी एक पीढ़ी आर्थिक रूप से बर्बाद हो गई. जिनका घर, दुकान, शोरूम, गाड़ी बर्बाद हुई. उसका पूरा हर्जाना  उन्हें कभी मिला. अगर नहीं तो क्यों ? इन आरक्षण आंदोलनों में जिनके घर ,दुकान, संसाधन यहाँ तक कि संतानें भी जल जाती हैं. उन्हें इन्साफ कौन देगा. उसका अपराध किस पर तय होगा. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा .आप आरक्षण के लिए  सामान्य आदमी का घर जला देंगे .आरक्षण महोदय आप  किसी आम आदमी का कर्ज लेकर लिया गया सेकेण्ड हैण्ड ट्रक जला देंगे. किसी की उधारी और मित्रों की जुगाड़ से 15 दिन पहले खोली गई दुकान  जला कर चले जायेंगे. पर क्या आरक्षण के प्यासे दैत्य आप ने सोचा ?  आप ने अपने आवेश को शांत करने के मद में मात्र एक दुकान नहीं जलाई. पूरा एक परिवार ,उसकी आशा और प्रगति की समस्त आकांक्षाओं को जला दिया. क्या इस पर कभी परिचर्चा या सेमीनार होगा. क्या ये देश में जातिगत द्वेश नहीं बढ़ा रही है. एक तरफ जातिभेद मिटाने की बात दूसरी तरफ जाति के आधार पर ही आरक्षण ये दोगलापन [कड़े शब्द के लिए क्षमाप्रार्थी] आखिर क्यों ? इसी का उत्तर चाहिए . इसी प्रश्न में संकट,स्वार्थ और समाधान छुपा हुआ है.
''खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है '' वर्तमान आरक्षण की मांगों का यही हाल है. यदि यही हाल रहा तो हर वर्ष कुछ नई जातियां आरक्षण की मांग लेकर खड़ी हो जायेंगी.और फिर सरकारी और गैरसरकारी सम्पत्तियों को फूंका जाएगा.आरक्षण का दैत्य  इस तरह हर महीने, हर साल कुछ लोगों की बलि लेगा और इसका आंकड़ा बढ़ता ही रहेगा .
महाभारत में एक  कथा है...
कचक्रा नामक नगरी में एक बकासुर नामक राक्षस रहता था. जिसे हर महीने उस नगरी से एक मनुष्य की बलि चाहिए होती थी  और मजबूर होकर गाँव वालों को बलि देनी पड़ती थी. आखिरकार उस नगर के लोगों की समस्या का समाधान भीम ने किया. वे स्वयं एक दिन बकासुर का भोजन बनकर उसके समक्ष गये और एक योद्धा की तरह युद्ध कर उसका वध किया.इस तरह बकासुर का स्थाई समाधान हुआ. ये घटना द्वापर की थी .अब कलयुग है.और इस कलयुग  में बकासुर आर्क्षणासुर के रूप में फिर पैदा हुआ है वो भी वंचित, पिछड़ों का चोला ओढ़कर जो सिर्फ आम लोगों की जान ही नहीं ले रहा है  बल्की भारत में नफरत, घृणा, आर्थिक और सामाजिक नुकसान भी बड़े पैमाने पर कर रहा है. अब समय आ गया है इस आरक्षणासुर का वध हो . क्या किसी योद्धा [ नेता ] में हिम्मत है जो भारत रूपी नगर को इस आरक्षणासुर से मुक्ति दिला सके. यदि नहीं तो  इस नगर का दृश्य आने वाले दिनों में इतना भयानक होगा .जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल होगा . फिर एक दिन उनका  नम्बर भी आएगा जो सोंच रहे हैं हमारा घर तो नगर के आख़िरी हिस्से में है हमारा नम्बर ही नहीं आएगा या जब आएगा तब देखा जायेगा. पर उनका नम्बर भी आएगा और वे बच नहीं पाएंगे. क्योंकि आर्क्षणासुर की भूख कभी खत्म नहीं होगी.

सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

हमारी दिल्ली यात्रा में शामिल लोग

पिछले दिनों  हमारा दिल्ली जाना हुआ . हमने दिल्ली को फिर से कई साल बाद देखा फिर वही ट्रैफिक सड़क से अधिक वाहन साथ ही साथ यातायात की चरम अनुशासन हीनता. दिल्ली  में प्रारम्भिक मीटर जहाँ 25 रुपये 2 किमी है वहीं मुम्बई में 18 रुपये 1.5 किमी.है  यहाँ ऑटो वालो की दादागिरी बेमिशाल हैं  मीटर से जल्दी जाना नहीं चाहते. मोलभाव हमेशा चलता है . इस मामले में मुम्बई सर्वोत्तम है . दिल्ली मैट्रों  को देखा भी और उससे सफ़र भी किया. मुम्बई लोकल जैसे मुम्बईकरों की यातायात की रीढ़ है कुछ ऐसी ही दिल्ली वालों के लिए मैट्रो बनती जा रही है उसमें भी व्यस्तता के समय में व्यस्त मैट्रो मार्गों पर धक्कमपेल हो गई है . राजीव चौक मैट्रो स्टेशन को देखकर मुझे मुम्बई के दादर जंक्शन की याद आ गयी  जो पश्चिम और मध्य रेल के स्टेशनों को जोड़ता है. इस यात्रा के दौरान हम[ श्री राकेश दुबे, श्री महेश शर्मा और मैं] संसदीय पुस्तकालय गये, वहां एक लम्बी सुरक्षा जाँच से गुजरे. संतुष्टि हुई देश की सुरक्षा की तत्परता देखकर.इन सारी जांचों से गुजरने का एक मात्र अभिप्राय सिर्फ और सिर्फ  वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुलदेव जी से मिलने का था . वर्तमान में वे  यहाँ एक वृहद आधिकारिक सरकारी  होने वाले आयोजन के संयोजक  हैं जैसा कि मुझे बातचीत से पता  चला . राहुलदेव जी से मिलना सुखद रहा. विशेष रूप से मेरे लिए... क्योंकि मेरी उनसे प्रथम भेंट थी. राकेशजी ने तो जनसत्ता में उनके सानिध्य में एक दशक तक कार्य किया और राकेश जी माध्यम से ही मिले. राहुल देव जी ने मुझे कई सीख भी दी. जो मेरे लिए बेहद हितकर हैं. ''आवेश'' और ''मैं'' से बचने की सलाह. मैंने शिरोधार्य किया. राहुलदेव जी का व्यक्तित्व सरल व महान है. हिन्दी के प्रति समर्पित हैं.
अब आगे बढ़ते है रामकृष्णपुरम की तरफ संकटमोचन विहिप कार्यालय भाई विनोद बंसल से मिलने 6 बजे मिलना था.  हम महेश शर्मा जी के रिश्तेदार  से मिलकर 5 बजे भजनपुरा से रामकृष्ण पुरम के लिए ऑटो से चल पड़े पहुँचे 7 बजकर 5 मिनट पर. हम तीन मित्र देरी के कारण थोड़ा शर्मिदा से थे पर पहुँचकर जब विनोद जी को फोन किया तो उन्होंने कहा वे गाड़ी पार्क करके आ रहे हैं.हमने राहत महसूस की.तो ऐसा है दिल्ली का ट्रैफिक. हम तीनों मित्रों ने अनेक सामाजिक , धार्मिक ,और पत्रकारिता पर करीब एक घंटे सहज माहौल तक बात किये . अंत में चाय के अंत के साथ विदा लिए तो अगले खुले कक्ष में कुर्ता और धोती लपेटे प्रवीण तोगड़िया जी दो अन्य सज्जनों के साथ बैठे थे  . दोनों ओर से  सस्नेह अभिवादन हुआ और हम आगे बढ़ चले हमें दक्षिण पुरी अपने गन्तव्य पहुंचना था.अब इस यात्रा का आख़िरी और महत्वपूर्ण अंश राहुलदेव जी से  मिलने से पहले हम तीनों मित्र 14 अशोक रोड स्थित श्रीमती मेनका गांधी जी के बंगले पर सुबह साढ़े 10 बजे पहुँचे. निर्धारित समय से आधे घंटे पहले.हमारी भेंट श्री दिनेश पचौरी जी के माध्मय से होनी थी वे बाद में आये पर उन्होंने स्वागतकक्ष में फोन करके हमारे बारे में सूचित कर दिया. इसलिए हमें द्वार के अंदर मोबाईल जमा कराने के साथ की प्रवेश मिला .स्वागतकक्ष में 15 मिनट की प्रतीक्षा के बाद श्री पचौरी जी आये और गर्मजोशी से मिले. तब तक वरुण जी की कोर कमेटी के नौजवान काफी संख्या में आ चुके थे. इनकी श्री वरुणगांधी जी के साथ नियमित तौर पर होनेवाली बैठक थी हमें 11 बजे का समय पचौरी जी ने दिया था पर अब 12 बज रहे थे .हम बेचैन हो रहे थे कि तभी महौल में हलचल हुई . भईया आये, भईया आये की आवाज के साथ.2 मिनट उन्होंने अपने परिचितों से औपचारिक बात की उसके बाद पचौरी जी द्वारा हमारी तरफ ध्यान आकर्षित कराया.मैंने ध्यान से देखा. वरुण जी के केश में सफेदी ने घोसला बना लिया था .सफेदी की इमानदारी पर मुझे एक पल के लिए गर्व हुआ. वो गरीब अमीर का भेदभाव या आरक्षण जैसी चीज नहीं है . हमारी तरफ से  सार्थक वार्ता हमारे अग्रज श्री राकेश दुबे जी ने प्रारम्भ की.  राकेश जी ने जब बताया कि वे एक दशक से अधिक समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे तो जनसत्ता की पत्रकारिता वरुण जी तारीफ की. मैं पीछे सोफे पर बैठा था महेश भाई राकेश जी के पास ही बैठे थे.10 मिनट तक राकेश भाई व वरुण जी में संवाद हुआ. राकेश भाई ने बात राजनीति से प्रारम्भ की थी किन्तु वरुण जी ने बात खत्म की सामाजिक चेतना पर उन्होंने शोषित, वंचित गरीब और उनके उत्थान की बात की.जैसा कि उनके बारे में बाह्य धारणा है कि वरुण अख्खड़, क्रोधी व तुनकमिजाज हैं, जहाँ इन दिनों उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री कौन की घुडदौड की चर्चा जोरों पर है जिसमें एक नाम वरुण भी हैं. वरुण की शारीरिक और वाचिक भाषा में ये कहीं परिलक्षित नहीं हुआ. उन्हें दिल्ली में बैठकर भी मुम्बई और उत्तरप्रदेश की बारीक जानकारी है क्षेत्रवार,समुदाय और  पिछड़ेपन के आधार पर सभी क्षेत्रों की जमीनी जानकारी है. अंत में उन्होंने एक शेर कह कर अपनी बात खत्म की .मुझे ठीक से याद नहीं है पर कुछ इस तरह था
 ''मेरा तेरा शीशे का घर मैं भी सोचूं तू भी सोच ,
क्यूँ दोनों के हाथ में पत्थर मैं भी सोचूं तू भी सोच,
क्या तुमको मालूम नहीं था लहरें आती जाती हैं !
फिर क्यूँ लिखा नाम रेत पर मैं भी सोचु तू भी सोच।
ये राजनीति पर उनका व्यंग था. हाँ इतना तो है कि वरुण गांधी अपने फैसले खुद लेते हैं और लेंगे उन्हें कोई अखिलेश नहीं बना सकता और यही मुझे उनकी तत्कालीन कमजोरी नज़र आयी.इसके साथ ही उन्होंने हमारी मुलाक़ात का समय खत्म होने की अपने शैली में इशारा किया क्योंकि अधिसंख्य लोग प्रतीक्षा में थे .अंत में महेश जी  राकेशजी और दिनेश पचौरी जी का आभार जिनके कारण ये दिल्ली  यात्रा सहज हो सकी.

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

जे एन यू के राष्ट्र द्रोहियों को उनकी औकात बताना जरुरी

22 दिसम्बर 1966 को स्थापित  जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय आज राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है आज जो लोग जेएनयू के उन छात्रों की वकालत कर रहे हैं  जो भारत विरोधी आयोजन कर रहे थे  असल में ये भी पहले जेएनयूं  के छात्र रहे हैं और आज इनकी बोई हुई देश विरोधी फसल आज लहरा रही है  इनमें प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, डी. पी. त्रिपाठी, आनंद कुमार, चंद्रशेखर प्रसाद आदि प्रमुख हैं। जेएनयू छात्र राजनीति पर शुरू से ही वामपंथी छात्र संगठनों ऑल इंडिया स्‍टडेंट्स एसोसिएशन(आइसा), स्‍टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस.एफ.आई.) आदि का वर्चस्व रहा है। वर्तमान में केद्रीय पैनल के चारों सदस्य उग्र वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्‍टडेंट्स एसोसिएशन से संबंधित हैं। आज इसीलिये येचुरी मीडिया में देशद्रोहियों के पक्ष में  बिना सत्य जाने बोले जा रहे थे.
नेहरूवादियों द्वारा कहा जाता रहा है कि जेएनयू की स्थापना  अध्ययन, अनुसंधान और अपने संगठित जीवन के उदाहरण और प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार - राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, धर्म निरपेक्षता, जीवन की लोकतांत्रिक पद्धति, अन्तरराष्‍ट्रीय समझ और सामाजिक समस्याओं के प्रति नेहरू के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के लिए किया गया.
नेहरू के हिन्दू चीनी भाई - भाई के दूरदर्शिता का परिणाम 1962 में भारत ने कभी न भूलने वाली दर्दनाक कीमत चुकाई. नेहरू  की अन्तर्राष्ट्रीय समझ की ही देंन है  कि  जो कश्मीर भारत गले का हार बनना  चाह रहा था उसे नेहरु ने गले की फांस बना दिया. नेहरू के सामाजिक न्याय का ताज़ा उदाहरण उनके नेता जी के बारे लिखे पत्रों से पता चला कि आज़ाद हिन्द फ़ौज के खजाने को लूटने वाले को नेहरु ने  प्रचार अधिकारी बना कर सम्मानित किया था . ऐसे विचारों वाले व्यक्ति के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय  देश के साथ क्रूर मजाक है . सुब्रमण्यम स्वामी ने सही ही कहा कि जे एन यू का नाम बदलकर सुभाषचंद्र बोस विश्वविद्यालय कर देना चाहिए .

 फिलहाल देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को अदालत ने तीन दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है। कन्हैया को शुक्रवार को अदालत में पेश किया गया। अदालत  में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट लवलीन  ने कन्हैया से पूछा तुम्हें कौन सी आजादी चाहिए ?  तो उसकी बोलती बंद हो गई इस सवाल पर वह चुप रहा।
संसद पर हुए आतंकी हमले में शामिल जम्मू-कश्मीर के अफजल गुरु को फांसी दे दी गई थी। इस आतंकी की पैरोकारी जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी में 9 फरवरी के दिन की गई। 9 फरवरी को यह सारा मामला JNU में आतंकी अफजल गुरु के मृत्यु दिवस को शहादत दिवस के रूप में मनाने के बाद से ही शुरू हुआ. जब ये बात  भाजपा सांसद महेश गिरि  को पता चली तो भाजपा सांसद महेश गिरि ने वसंत कुंज थाने में कल भादंसं की धारा 124 ए (देशद्रोह) और 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत अज्ञात लोगों पर मामला दर्ज किया गया था। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, मामले के सिलसिले में कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया गया है पर और दर्जनों देश द्रोही जो कैमरे में भारत विरोधी नारे लगाते दिखाई दे रहे हैं वे क्यों गिरफ्तार नहीं किये गये .हर सच्चे भारतीय के मन में चुभ रहा है . ये अब छात्र कहलाने योग्य नहीं हैं. ये राष्ट्र द्रोही हैं . इन्हें बिना देर किये जेल में डाल देना चाहिए .इनकी अब तक हासिल की गई शैक्षणिक योग्यता  को अमान्य कर दिया जाना चाहिए और बिना देर किये इनके समर्थन में नारे लगानेवालों को तत्काल जेएनयू से निष्कासित कर देना चाहिए ताकि भविष्य में दुबारा कोई भारत विरोधी गतिविधि करने से पहले हजार बार सोंचे. बिना तथ्य को जाने  इनका समर्थन करने वाले नेताओं को भी हिरासत में लेकर पूछताछ करनी चाहिए.देशद्रोही को समर्थन करनेवाला भी अपराधी होता है .ऐसे मसलों पर छुद्र राजनीति करनेवाले नेताओं को भी सबक सिखाना जरूरी है .
विश्वविद्यालय प्रशासन  की भी जाँच होनी चाहिए.  जिसने राष्ट्र विरोधी आयोजन की अनुमति दी और यदि नहीं दी तो फिर आयोजन हुआ कैसे . इसमें विश्वविद्यालय के कुछ लोग भी शामिल हों तो भी ताज्जुब नहीं......
 हिन्दी तहलका में एक कोई  श्रीमान कृष्णकांत  हैं  उन्होंने इस विषय पर एक लेख लिखा है  उसका एक अंश देखिये ...       ''जेएनयू के कुलपति सुधीर कुमार सोपोरी से एक बार एक साक्षात्कार में पूछा गया कि जेएनयू में खास क्या है? उनका जवाब था, ‘यहां का माहौल और खुली सोच इस विश्वविद्यालय की ताकत है. आप को कहने और सुनने की क्षमता मिलती है. यहां के शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच एक संबंध है. कई छोटी जगहों और पिछड़े तबके के छात्रों से मिलना बहुत भावुकता भरा होता है. कई छात्र कहते हैं कि जेएनयू नहीं होता तो हम पढ़ नहीं पाते. अगर शांति भंग न हो तो यहां आपको जो विचार-विमर्श करना है कीजिए. हमें कोई समस्या नहीं. हमें विभिन्न अनुशासनों की दीवारें तोड़नी होंगी,  कुलपति महोदय अपने साक्षात्कार में ''अनुशासनों की दीवारें '' तोड़ने की बात करते हैं  .सोंचने वाली बात है जहाँ के कुलपति की सोंच ऐसी हो उस संस्थान का क्या हाल होगा . जे एन यू के पैरोकार कहते हैं  इसने दुनिया में भारतीय प्रतिभा का डंका बजाया है . जे एन यू  भारतीय शिक्षा का डंका दुनिया में बजाता है.  इन अंधे पैरोकारों को एक बार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की तरफ देखना चाहिए सारे भ्रम दूर हो जायेंगे .
जनवरी १९१६ ई. (वसंतपंचमी) काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. उसके  कई छात्र आगे चलकर जे एन यू में प्राध्यापक हुए. बी एच यू के कुछ महान छात्रों के नाम देखिये भारत रत्न से लेकर पद्म पुरस्कार व मैग्सेसे से सम्मानित हुए. उन्होंने कभी ऐसी राष्ट्र विरोधी कृत्य नहीं किया .
 शांति स्वरूप भटनागर,,बीरबल साहनी -- अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरावनस्पति वैज्ञानिक,जयन्त विष्णु नार्लीकर,सी एन आर राव-वैज्ञानिक, भारत रत्न से सम्मानित,हरिवंश राय बच्चन,भूपेन हजारिका, गायक एवं संगीतकार,प्रोफ. टी आर अनंतरामन,अहमद हसन दानी, पुरातत्व विद्वान एवं इतिहासकार,लालमणि मिश्र संगीतकार,प्रकाश वीर शास्त्री, भूतपूर्व सांसद आर्य समाज आंदोलन के प्रणेताओं में से एक,आचार्य रामचन्द्र शुक्ल,  आचार्य हजारी प्रसाद ,हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक एवं इतिहासकार,रामचन्द्र शुक्ल, चित्रकार,एम एन दस्तूरी, धातुकर्म के विद्वान,नरला टाटा राव,सुजीत कुमार - अभिनेता,समीर - गीतकार,मनोज तिवारी - भोजपुरी अभिनेता,मनोज सिन्हा-वर्तमान रेल राज्य मंत्री,माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरु जी) - आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक,बाबू जगजीवन राम - भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री,अशोक सिंघल - विश्व हिन्दू परिषद के भूतपूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष ,संदीप पाण्डेय,  मन्नू भंडारी, विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला, राम मनोहर लोहिया, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, जानकी वल्लभ पटनायक,वैज्ञानिक जयंत नार्लिकर,  भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहाकार पी. रामा राव,  ऑयल एंड. नेचुरल गैस कमीशन के चेयरमैन बी.सी. बोरा, एशिया ब्राउन बावेरी के सीएमडी के. एन. शिनॉय, पंजाब नेशनल बैंक के सीएमडी एस. एस. कोहली सरीखे लोग विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। कितने नाम गिनाऊँ ......... यूएसए, यूके, कनाडा, जर्मनी, आस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया, इराक, इरान, चिलि, पोलेण्ड, गिरि, यूव्र ेन, रसियन, बंग्लादेश, नेपाल और इस्टोनिया इत्यादि सहित ६० देशों के विदेशी छात्रगण विश्वविद्यालय में अध्ययन प्राप्त कर रहे हैं। विदेशी छात्रों को उपयुक्त कार्यक्रम एवं तार्वि क मामलों के चयन में एक अन्तर्राष्ट्रीय छात्र केन्द्र सहायता प्रदान करता है। अफ़जल को शहीद बतानेवालों, इण्डिया में रहकर इण्डिया गो बैक कहने वालों, भारत के टुकड़े करने वालों, हजारों अफ़जल पैदा करने की मंशा रखने वालों को उनकी औकात  बिना देरी किये वर्तमान सरकार को बतानी होगी . हर सच्चे भारतीय की आज यही आवाज़ है . जय हिन्द

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

चवन्नी का मेला: स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक ...

चवन्नी का मेला: स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक ...: स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक संक्षिप्त दृष्टि देश स्वतंत्र कराने में लेखनी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज की तर...

स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक संक्षिप्त दृष्टि

स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक संक्षिप्त दृष्टि


देश स्वतंत्र कराने में लेखनी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज की तरह
कलम का इतने बड़े पैमाने पर व्यवसायीकरण नहीं हुआ था, न ही इतने
संसाधन मौजूद थे. फिर भी गुलामी के उस वातावरण में जिस प्रकार पत्रकारिता
(कलम) मुखरित हुई, वह आज की पत्रकारिता के लिए एक आदर्श है,
प्रेरणादायक है. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हुई हार के बाद भारतीय
पत्रकारिता में राष्ट्रप्रेम की भावना अपने उफान पर आ गई. जिसका मुख्य
उद्देश्य था अंग्रेजों के हाथों से देश को मुक्त कराना. उस समय जन सभाओं
का आयोजन कर अपनी बात जनता तक पहुंचाने की प्रणाली का आरंभ नहीं
हुआ था. इसी कारण समाज सुधारक व अन्य राष्ट्रप्रेमी अपनी बात जनता तक
पत्रों के माध्यम से पहुंचाते थे. देशहित में आवाज बुलंद करने का मुख्य श्रेय
विभिन्न भारतीय भाषाओं के पत्र-पत्रिकाओं को जाता है.
सन 1857 में 'पयाम-ए-आजादी' नामक अखबार का प्रकाशन हिंदी और उर्दू
में एक साथ हुआ. यह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तथा राष्ट्रीय भावना को
जागृत करने वाली खबरें प्रकाशित करता था. इस अखबार में नाना साहब,
मंगल पांडेय, तात्या टोपे और बहादुरशाह जफर (अंतिम मुगल सम्राट) जैसे
देशभक्तों की संघर्ष की कथाएं छपती थीं. बहादुर शाह जफर का निम्न संदेश
इस अखबार में छपा था.
'हिंदुस्तान के हिंदुओं और मुसलमानों उठो, भाईयों उठो, खुदा ने इंसान को
जितनी बरकते अता की है, उनमें सबसे कीमती बरकत 'आजादी' है.
'पयाम-ए-आजादी' की विचारधारा व भाषा ने पाठकों के दिलों को झकझोर के
रख दिया था. पाठकों का मन राष्ट्रप्रेम से लबालब हो गया था. इस अखबार के
कई संपादक, पत्रकार व पाठक फिरंगियों के क्रूर शासन द्वारा प्रताडि़त हुए.
1878 में जब अंग्रेज गवर्नर लार्ड लिटन ने देखा कि भारतीय भाषाओं के
अखबार अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खबरे छाप रहे हैं और उसका घातक असर
भी हो रहा है तो उसने 'वर्ना€यूलर प्रेस एक्ट' लागू किया. इस एक्ट का
दुरुपयोग भारतीय भाषाओं के पत्रकारों को तंग करने के लिए किया जाता था.
उन पर जुर्माना तथा जेल की सजा दी जाती थी. भूपेंद्रनाथ का 'युगांतर, लाला
लाजपतराय का 'वंदेमातरम' तथा तिलक जी का 'केसरी' राष्ट्रीय भावना को
ऊफान पर ला दिया था. 1879 में अंग्रेजी सरकार ने लोकमान्य तिलक पर
अंग्रेजी शासन विरोधी गतिविधियों के कारण मुकदमा चलाया. तिलक के
खिलाफ जज के निर्णय सुनाते हुए 6 वर्ष की जेल की सजा सुनाई. इस पर
बंगाली समाचार पत्र 'अमृत बाजार पत्रिका' के संपादक शिशिर कुमार ने लिखा
था'
''मूर्ख और बेघर पारसी जज (जस्टिस डावर) जिसे अपने जूते के फीते बांधने
की अक्ल नहीं है, तिलक जैसे विख्यात अभियुक्त का मनमाना निरादर कर रहा
है और ऐसे प्रतिष्ठित देशभक्त को कौमपरस्ती की बातें बताने का दुस्साहस कर
रहा है''.
लेनिन ने 1920 ई. में अमृत बाजार पत्रिका को सर्वोत्तम राष्ट्रीय अखबार का
पद दिया था. अंग्रेजी भाषा के अखबारों में कुछ अखबार अंग्रेजी सरकार के भी
विरोधी तथा आजादी के पक्ष में थे. चेन्नई से प्रकाशित 'दि हिंदू (1878) के
संपादक सुब्रह्मण्यम अय्यर अपने समय की विचारधारा से काफी आगे थे. वे
एक महान समाज सुधारक थे. पहले 1918 में इंग्लैंड में इस अखबार के प्रवेश
पर रोक लगा दी गई और जब इस अखबार ने 1919 में पंजाब में अंग्रेजों द्वारा
किए गए अत्याचार की कड़ी भर्त्सना की तो इसकी 2 हजार रुपए की जमानत
जब्त कर ली गई. 'दी स्टेट्समैन (1875) हमेशा यूरोपीय लोगों के पक्ष में
कलम चलाता था. परंतु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद सन 1885
में अखबार ने लिखा - आशा है कि अब हिंदुस्तान को उपनिवेशकों के जुल्म
से छुटकारा मिल जाएगा.
अंग्रेजी अखबार 'दि ट्रिब्यून' (1881) की राष्ट्रीय नीतियों व उच्च कोटि के
पत्रकारिता के गांधी जी बड़े प्रशंसक थे. ट्रिब्यून के संपादक कालीनाथ एक
सच्चे देशभक्त व निर्भीक संपादक थे. जलियांवाला बाग के महाखलनायक क्रूर
जनरल डायर की कारस्तानी की कड़ी निंदा करने के कारण कालीचरण जी को
जेल की हवा खानी पड़ी थी.
सन 1920 में जन्माष्टमी के दिन 'आज शुरू हुआ. इस अखबार के संपादक
उच्च कोटि के क्रांतिकारी पराडकर जी जरूरत पडऩे पर सरकार को चेतावनी
देने से भी नहीं डरते थे. गोरी सरकार की दमन नीति के कारण यह अखबार
1930 में 6 महीने तक बंद रहा. 1931 में पुनःजोरदार संपादकीय लिखने के
कारण उन्हें कारावास की सजा हुई. देश की आजादी का शंखनाद करनेवालों
की एक लंबी फेहरिस्त है. जिनमें 'महारथी' के संस्थापक पं. रामचंद्र शर्मा,
'अर्जुन' के इंद्र विद्यावाचस्पति' पं. सुंदरलाल, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, महामना
मदनमोहन मालवीय आदि अनेक महापुरुषों की एक लंबी कड़ी है. महात्मा
गांधी 'नवजीवन के लिए लगातार लिखते थे और उनके आश्रम से 'यंग
इंडिया निकलती थी. इन पत्रों के द्वारा वे समाज की कुरीतियों के खिलाफ
जेहाद करते.
हैदराबाद से प्रकाशित होने वाले उर्दू अखबार 'इमरोज' के संपादक शोयेब
उल्लाखान हैदराबाद के अंतिम निजाम मीर उस्मान अली की हुकूमत के दौरान
सन 1946-47 में जोरों पर चल रहे 'रजाकार' शोयेब उल्ला से नाराज थे.
अचानक एक दिन रजाकारों ने उनके कार्यालय में घुसकर उनका एक हाथ काट
डाला और अधिक खून बहने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. शोयेब उल्ला अपने
आदर्श के लिए शहीद हो गए.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए गणेश
शंकर विद्यार्थी पुरस्कार शुरू किया है.

'कलकत्ता गजट' था पहला अखबार

1. कलकत्ता गजट, 1784
2. ओरिएंटल मैगजीन, 1785 मि. गार्डेन और मि. हे
3. मद्रास कोरियर 1785 मि. गार्डेन और मि. हे
4. बंबई हैराल्ड, 1789 (1861 में इसका नाम टाइम्स ऑफ इंडिया
हो गया)
5. ओरिएंटल म्यूजियम (मासिक) 1771 मि. ह्वाइट
6. इंडिया गजट, 1792 (1780 दूसरे मत के अनुसार शुरू हुआ)
7. बंगला हरकारा (साप्ताहिक) 20.1.1795 डॉ. मैकलीन
8. इंडियन अपोलो, 4.10.1795
9. एशियाटिक मैगजिन 21.6.1798 बंगाल हरकारा कार्यालय से
10. कलकत्ता मंथली 1.11.1798 जे. ह्वाइट
11. रिलेटर (अर्ध साप्ताहिक 4.4.1799)
12. जाम-ए-जहानुमा 1822 फारसी
13. बंबई समाचार 1822 गुजराती (यह अखबार अभी भी चल रहा
है)
14. जाम-ए-जमशेद 1831 गुजराती
15. बंबई दर्पण 1832 मराठी और अंग्रेजी
16. बंबई अखबार 1840 मराठी
निम्नलिखित सभी हिंदी

17. उदंत मार्तंड मई 1826 कलकत्ता से [ प्रथम हिन्दी समाचार पत्र]
18. प्रजातंत्र 1836 कलकत्ता से
19. जगदीपक भास्कर 1849 कलकत्ता से
20. समाचार सुधा दर्शन 1854 कलकत्ता

अंग्रेजी अखबार

21. पायोनियर 1865 (यह ब्रिटिश हुकूमत का प्रवक्ता था)
22. अमृत बाजार पत्रिका, 1871
23. दि स्टेट्समैन, 1875 कलकत्ता
24. सिविल एंड मिलिट्री गजट 1876 (लाहौर से, यूरोपियों का हितैषी)
25. दि हिंदू, 1878 मद्रास
26. आनंद बाजार पत्रिका, 1878
27. दि ट्रिब्यून 1881
28. दि हिंदुस्तान टाइम्स 1923

हिंदी अखबार

29. श्री वेंकटेस्वर समाचार, कलकत्ता
20. विश्वमित्र, कलकत्ता
31. आज, 1920, बनारस (वाराणसी)
32. देश, 1920, पटना
33. स्वतंत्र, 1920
34. अर्जुन, 1920 कलकत्ता और दिल्ली
35. समाचार, 1920, कलकत्ता और दिल्ली
36. हिंदुस्तान, 1936, दिल्ली
37. अर्थवत, 1940, पटना

(यह सिर्फ मुख्य अखबारों की सूची है. संपूर्ण अखबारों की नहीं है)