शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक संक्षिप्त दृष्टि

स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का योगदान पर एक संक्षिप्त दृष्टि


देश स्वतंत्र कराने में लेखनी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज की तरह
कलम का इतने बड़े पैमाने पर व्यवसायीकरण नहीं हुआ था, न ही इतने
संसाधन मौजूद थे. फिर भी गुलामी के उस वातावरण में जिस प्रकार पत्रकारिता
(कलम) मुखरित हुई, वह आज की पत्रकारिता के लिए एक आदर्श है,
प्रेरणादायक है. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हुई हार के बाद भारतीय
पत्रकारिता में राष्ट्रप्रेम की भावना अपने उफान पर आ गई. जिसका मुख्य
उद्देश्य था अंग्रेजों के हाथों से देश को मुक्त कराना. उस समय जन सभाओं
का आयोजन कर अपनी बात जनता तक पहुंचाने की प्रणाली का आरंभ नहीं
हुआ था. इसी कारण समाज सुधारक व अन्य राष्ट्रप्रेमी अपनी बात जनता तक
पत्रों के माध्यम से पहुंचाते थे. देशहित में आवाज बुलंद करने का मुख्य श्रेय
विभिन्न भारतीय भाषाओं के पत्र-पत्रिकाओं को जाता है.
सन 1857 में 'पयाम-ए-आजादी' नामक अखबार का प्रकाशन हिंदी और उर्दू
में एक साथ हुआ. यह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तथा राष्ट्रीय भावना को
जागृत करने वाली खबरें प्रकाशित करता था. इस अखबार में नाना साहब,
मंगल पांडेय, तात्या टोपे और बहादुरशाह जफर (अंतिम मुगल सम्राट) जैसे
देशभक्तों की संघर्ष की कथाएं छपती थीं. बहादुर शाह जफर का निम्न संदेश
इस अखबार में छपा था.
'हिंदुस्तान के हिंदुओं और मुसलमानों उठो, भाईयों उठो, खुदा ने इंसान को
जितनी बरकते अता की है, उनमें सबसे कीमती बरकत 'आजादी' है.
'पयाम-ए-आजादी' की विचारधारा व भाषा ने पाठकों के दिलों को झकझोर के
रख दिया था. पाठकों का मन राष्ट्रप्रेम से लबालब हो गया था. इस अखबार के
कई संपादक, पत्रकार व पाठक फिरंगियों के क्रूर शासन द्वारा प्रताडि़त हुए.
1878 में जब अंग्रेज गवर्नर लार्ड लिटन ने देखा कि भारतीय भाषाओं के
अखबार अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खबरे छाप रहे हैं और उसका घातक असर
भी हो रहा है तो उसने 'वर्ना€यूलर प्रेस एक्ट' लागू किया. इस एक्ट का
दुरुपयोग भारतीय भाषाओं के पत्रकारों को तंग करने के लिए किया जाता था.
उन पर जुर्माना तथा जेल की सजा दी जाती थी. भूपेंद्रनाथ का 'युगांतर, लाला
लाजपतराय का 'वंदेमातरम' तथा तिलक जी का 'केसरी' राष्ट्रीय भावना को
ऊफान पर ला दिया था. 1879 में अंग्रेजी सरकार ने लोकमान्य तिलक पर
अंग्रेजी शासन विरोधी गतिविधियों के कारण मुकदमा चलाया. तिलक के
खिलाफ जज के निर्णय सुनाते हुए 6 वर्ष की जेल की सजा सुनाई. इस पर
बंगाली समाचार पत्र 'अमृत बाजार पत्रिका' के संपादक शिशिर कुमार ने लिखा
था'
''मूर्ख और बेघर पारसी जज (जस्टिस डावर) जिसे अपने जूते के फीते बांधने
की अक्ल नहीं है, तिलक जैसे विख्यात अभियुक्त का मनमाना निरादर कर रहा
है और ऐसे प्रतिष्ठित देशभक्त को कौमपरस्ती की बातें बताने का दुस्साहस कर
रहा है''.
लेनिन ने 1920 ई. में अमृत बाजार पत्रिका को सर्वोत्तम राष्ट्रीय अखबार का
पद दिया था. अंग्रेजी भाषा के अखबारों में कुछ अखबार अंग्रेजी सरकार के भी
विरोधी तथा आजादी के पक्ष में थे. चेन्नई से प्रकाशित 'दि हिंदू (1878) के
संपादक सुब्रह्मण्यम अय्यर अपने समय की विचारधारा से काफी आगे थे. वे
एक महान समाज सुधारक थे. पहले 1918 में इंग्लैंड में इस अखबार के प्रवेश
पर रोक लगा दी गई और जब इस अखबार ने 1919 में पंजाब में अंग्रेजों द्वारा
किए गए अत्याचार की कड़ी भर्त्सना की तो इसकी 2 हजार रुपए की जमानत
जब्त कर ली गई. 'दी स्टेट्समैन (1875) हमेशा यूरोपीय लोगों के पक्ष में
कलम चलाता था. परंतु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद सन 1885
में अखबार ने लिखा - आशा है कि अब हिंदुस्तान को उपनिवेशकों के जुल्म
से छुटकारा मिल जाएगा.
अंग्रेजी अखबार 'दि ट्रिब्यून' (1881) की राष्ट्रीय नीतियों व उच्च कोटि के
पत्रकारिता के गांधी जी बड़े प्रशंसक थे. ट्रिब्यून के संपादक कालीनाथ एक
सच्चे देशभक्त व निर्भीक संपादक थे. जलियांवाला बाग के महाखलनायक क्रूर
जनरल डायर की कारस्तानी की कड़ी निंदा करने के कारण कालीचरण जी को
जेल की हवा खानी पड़ी थी.
सन 1920 में जन्माष्टमी के दिन 'आज शुरू हुआ. इस अखबार के संपादक
उच्च कोटि के क्रांतिकारी पराडकर जी जरूरत पडऩे पर सरकार को चेतावनी
देने से भी नहीं डरते थे. गोरी सरकार की दमन नीति के कारण यह अखबार
1930 में 6 महीने तक बंद रहा. 1931 में पुनःजोरदार संपादकीय लिखने के
कारण उन्हें कारावास की सजा हुई. देश की आजादी का शंखनाद करनेवालों
की एक लंबी फेहरिस्त है. जिनमें 'महारथी' के संस्थापक पं. रामचंद्र शर्मा,
'अर्जुन' के इंद्र विद्यावाचस्पति' पं. सुंदरलाल, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, महामना
मदनमोहन मालवीय आदि अनेक महापुरुषों की एक लंबी कड़ी है. महात्मा
गांधी 'नवजीवन के लिए लगातार लिखते थे और उनके आश्रम से 'यंग
इंडिया निकलती थी. इन पत्रों के द्वारा वे समाज की कुरीतियों के खिलाफ
जेहाद करते.
हैदराबाद से प्रकाशित होने वाले उर्दू अखबार 'इमरोज' के संपादक शोयेब
उल्लाखान हैदराबाद के अंतिम निजाम मीर उस्मान अली की हुकूमत के दौरान
सन 1946-47 में जोरों पर चल रहे 'रजाकार' शोयेब उल्ला से नाराज थे.
अचानक एक दिन रजाकारों ने उनके कार्यालय में घुसकर उनका एक हाथ काट
डाला और अधिक खून बहने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. शोयेब उल्ला अपने
आदर्श के लिए शहीद हो गए.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए गणेश
शंकर विद्यार्थी पुरस्कार शुरू किया है.

'कलकत्ता गजट' था पहला अखबार

1. कलकत्ता गजट, 1784
2. ओरिएंटल मैगजीन, 1785 मि. गार्डेन और मि. हे
3. मद्रास कोरियर 1785 मि. गार्डेन और मि. हे
4. बंबई हैराल्ड, 1789 (1861 में इसका नाम टाइम्स ऑफ इंडिया
हो गया)
5. ओरिएंटल म्यूजियम (मासिक) 1771 मि. ह्वाइट
6. इंडिया गजट, 1792 (1780 दूसरे मत के अनुसार शुरू हुआ)
7. बंगला हरकारा (साप्ताहिक) 20.1.1795 डॉ. मैकलीन
8. इंडियन अपोलो, 4.10.1795
9. एशियाटिक मैगजिन 21.6.1798 बंगाल हरकारा कार्यालय से
10. कलकत्ता मंथली 1.11.1798 जे. ह्वाइट
11. रिलेटर (अर्ध साप्ताहिक 4.4.1799)
12. जाम-ए-जहानुमा 1822 फारसी
13. बंबई समाचार 1822 गुजराती (यह अखबार अभी भी चल रहा
है)
14. जाम-ए-जमशेद 1831 गुजराती
15. बंबई दर्पण 1832 मराठी और अंग्रेजी
16. बंबई अखबार 1840 मराठी
निम्नलिखित सभी हिंदी

17. उदंत मार्तंड मई 1826 कलकत्ता से [ प्रथम हिन्दी समाचार पत्र]
18. प्रजातंत्र 1836 कलकत्ता से
19. जगदीपक भास्कर 1849 कलकत्ता से
20. समाचार सुधा दर्शन 1854 कलकत्ता

अंग्रेजी अखबार

21. पायोनियर 1865 (यह ब्रिटिश हुकूमत का प्रवक्ता था)
22. अमृत बाजार पत्रिका, 1871
23. दि स्टेट्समैन, 1875 कलकत्ता
24. सिविल एंड मिलिट्री गजट 1876 (लाहौर से, यूरोपियों का हितैषी)
25. दि हिंदू, 1878 मद्रास
26. आनंद बाजार पत्रिका, 1878
27. दि ट्रिब्यून 1881
28. दि हिंदुस्तान टाइम्स 1923

हिंदी अखबार

29. श्री वेंकटेस्वर समाचार, कलकत्ता
20. विश्वमित्र, कलकत्ता
31. आज, 1920, बनारस (वाराणसी)
32. देश, 1920, पटना
33. स्वतंत्र, 1920
34. अर्जुन, 1920 कलकत्ता और दिल्ली
35. समाचार, 1920, कलकत्ता और दिल्ली
36. हिंदुस्तान, 1936, दिल्ली
37. अर्थवत, 1940, पटना

(यह सिर्फ मुख्य अखबारों की सूची है. संपूर्ण अखबारों की नहीं है)

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