शनिवार, 30 नवंबर 2024

जिस कंधे पर बैठ पिता के मेला घूमा करता था।

जिस कंधे पर बैठ पिता के मेला घूमा करता था।

उसी पिता को आज सदा को कंधा दे आया हूँ 

मल मल के नहलाने वाले अपने हाथ खिलाने वाले 

उसी पिता को सरयू तट पर दाह किये आया हूँ।


पिता प्रेत हो गये दिवस दस फिर से पितृ बनाया

बाहर से अब गये पिता ने अंदर गेह बनाया 

चंचलपन यूँ गया अचानक नहीं समझ कुछ पाया 

उम्र अचानक बढ़ी लगी मुझको गंभीर बनाया 



झुका झुका सा जब धीरे से आगे बढ़ता हूँ 

धोती कुरता पहन के जब सइकिल पर चढ़ता हूँ 

लगता है बाबू जी कहते जैसे जरा सम्हल के

बाहर से अब गये पिता को अंदर गुनता हूँ 



धोती कुरते  संग कंधे पर जभी अंगोंछा रखता हूँ 

बाबू जी के पहनावे का स्वाद अचानक चखता हूँ 

जैसे साथ - साथ फहराती धोती के संग चलते हैं 

मुझे अचानक भ्रम सा होता अगल बगल लखता हूँ।


धोती कुरते में अपने ए पिता सा लगता है।

बातचीत में साफ़गोई भी पिता सा कहता है 

जब से पिता देह को त्यागे अक्सर सुनता हूँ 

व्यक्त करूँ कैसे कि ए सब कैसा लगता है।


दो बच्चे मेरे भी थे पर पिता न बन पाया था 

उनके जाने पर पर अब मुझमें पिता भाव आया था ।

कंधे मेरे आज झुके हैं इस विचार के आते 

आज पिता को एक पिता फिर झुक कर गाया था ।


वर्षों बाद  मेरा  बेटा  कंधे पर आया है।

याद पुरानी हो आयी जब मेला आया है।

(बाऊ जी के द्वादश संस्कार के उपरांत पहले भाव की उपज)


23/11/2024



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