शुक्रवार, 7 जून 2024

उदास झूठे लोग !


 

ये रात बड़ी उदास है !

इस परिवेश में

बड़ी उदासी है !

दिन नीरस सा

लग रहा है.

जब हम

ऐसा कहते हैं,

तो कितना बड़ा

भावनात्मक झूठ

बोल रहे होते हैं !

और लोग

मुँह लटकाकर वैसी ही

झूठी संवेदना

जताते है.

सत्य तो यह होता कि

उदास रात नहीं होती,

उदास होते हैं हम !

उदासी परिवेश में नहीं,

हमारे अंदर

पसरी होती है और

हम दिन को

नीरस बताकर

उसे अपनी हताशा में

कोस रहे होते हैं.

हम सच्चे वाले

झूठे लोग!


पवन तिवारी 

०७/०६/२०२४

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