शुक्रवार, 14 जून 2024

सोचना



कभी सोचता हूँ

ये करुँगा, फिर

अगले क्षण-

ये नहीं, वो करुँगा !

फिर कभी सोचता हूँ ;

निश्चित करता हूँ

कल आरम्भ करुँगा !

और कल, नया विचार

उभर आता है !

ये, वो, कुछ नहीं,

जो करुँगा, ढंग का करुँगा !

और फिर-

कुछ नहीं करता !

वो कहती हैं –

तुम्हारी बुद्धि

भ्रष्ट हो गयी है!

एक जन कहते हैं-

यह भ्रमित हो गया है !

अम्मा कहती हैं–

बेटा परेशान है,

उलझन में है /

सही कौन है ?

आज – कल

यही सोच रहा हूँ /

 

पवन तिवारी

१४/०६/२०२४  

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