बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

वसीयत: अंतिम इच्छा !


 


मेरी अंतिम इच्छा है, मृत्यु!

जब मेरे रक्त संबंधियों ने

मुझे मान लिया था ‘अस्तित्त्व’हीन

परिवार ने कह दिया था

निकम्मा, नकारा, कामचोर और भी

इसी पक्ष के शब्द!

मेरा लिखना ‘काम, की श्रेणी से

खारिज रहा और मुझे  

घोषित किया गया विक्षिप्त!

तब मैंने मरने की इच्छा को

बलवती होते देखा था अपने अंदर!

 अब जब! तब से

बीत गये पूरे चार साल,

वह इच्छा उतनी ही बलवती है.

तारीख़ बता रही है

अब मुझे वर्ष ४२ !

सोचता हूँ,  

१६ साल में विदा हुए ज्ञानेश्वर,  

विवेकानंद शरीर छूटा वर्ष ३९ में,

शंकराचार्य का २९ में,

हमारे ही कवि कुल अग्रज

शिव कुमार बटालवी, धूमिल,

रांगेय राघव!

इन सबसे बूढ़ा हो चुका है

मेरा यह शरीर!

इधर के चार सालों में

कई - कई पन्ने किये काले;

कुछ पाठकों ने

उन्हें पढ़कर किये पीले!

वही पीले करने वाले

मेरे अपने हैं.

मेरी अंतिम इच्छा पूरी होने पर

मेरे अपनों दुखी मत होना !

मनाना खुशियाँ!

बच्चों को खिलाना रसगुल्ले,

क्योंकि मुझे बचपन में

किसी ने नहीं खिलाये रसगुल्ले!

मैं खुश होता तो

निश्चित ही रसगुल्ले खाता,

तुम बच्चों को देना

मेला जाने के लिए पैसे!

तुम नंगे पैरों वाले बच्चों को

पहनाना जूते!

तुम खुले बदन बच्चों को

पहनाना पैंट और बू-शर्ट.

मेरी अंतिम इच्छा पूरी होने पर

मेरे अपनों! इस तरह मनाना ख़ुशी,

क्योंकि यही है मेरी अंतिम इच्छा !

मेरे इस लिखे को

मत समझना कविता;

समझना मेरी वसीयत !

 

पवन तिवारी

०७/०२/२०२४        

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक कवि की अंतिम इच्छा ने मन को झकझोर कर रख दिया। व्यथित कवि मन की क्षुब्ध मार्मिक वसीयत क्या कहें शब्द नहीं मिल रहे...।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. मार्मिक रचना ! सही कहते हैं लोग, घर का जोगी जोगड़ा, पार गाँव का सिद्ध

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