बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

एक लेखक या कवि

 




एक लेखक या कवि

रोज थोड़ा-थोड़ा मरता है.

और भरता है थोड़ा थोड़ा जीवन

अपनी कहानी और कविता में !

वो साहित्य भरता है- समाज में,

मनुष्यता में थोड़ा - थोड़ा जीवन

एक दिन साहित्यकार थोड़ा - थोड़ा

मरते - मरते मर जाता है !

मर जाती है उसकी काया किंतु,

वह अपने साहित्य से

समाज में थोड़ा - थोड़ा

जीवित होते – होते पूरी तरह

जी उठता है और फिर वह

हमेशा के लिए न केवल

जीवित रहता है बल्कि

रहता है सदा प्रसन्न और जीवंत

और कहाता है महान,

बिना किसी काया के !


पवन तिवारी

३०/०१/२०२४     

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