गुरुवार, 25 जनवरी 2024

खाली जेब ने


 


खाली जेब ने सिखाया था

रेल की पटरियों पर चलना.

रेल की पटरियों ने सिखाया

अनसुनी ध्वनियों को सुनना.

और चीखती ध्वनियों से

रहना सजग और दूर!

उन पटरियों ने सिखाया

ठहर कर भी दूर की यात्रा करना!

लोहे की कठोर पटरियों ने

जिंदगी में जीने का,

एक ऐसा भी तरीका बताया;

इन्हीं पटरियों के बीच चलता हुआ

आगे-पीछे, अगल- बगल झाँकता हुआ,

मृत्यु से आँख मिचोली खेलता हुआ;

कालवा से चलकर मुलुंड

पहुँच जाता था मेरे साथ मेरा बस्ता!

पाठशाला ने बस्ते की शिक्षा दी,

पटरियों ने जिंदगी की!

लौटते समय देर रात हो जाने पर

सहपाठियों से इतर डिब्बे में

चढ़ जाता भीड़ में बेटिकट

अवैध रेल यात्री के रूप में

करता यात्रा!

कलवा स्टेशन उतरने पर

किसी को काले कोट में

टहलते देख, बढ़ जाती थी धड़कन

और सूखने लगते थे होंठ!

केवल तीन रूपये का अभाव

मुझे करता था इतना भयभीत!

आज भी काम आती है

उस तीन रूपये और

लोहे की पटरियों की सीख!

इसीलिये शायद,

जब कभी किसी के साथ

करता हूँ किसी गंतव्य की यात्रा

तो सबसे पहले खरीदता हूँ टिकट

खुद से पहले अपने सहयात्री का!

अब तक बच सका हूँ

थोड़ा सा मनुष्य !

 

पवन तिवारी

२५/०१/२०२४         

   

 

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

भात और लात


 

कभी थोड़े चुपके से

दीदी ने प्यार से खिलाया था

अपने हिस्से का भात !

और बदले में पड़ी थी

पीछे से एक जोरदार लात !

आ गया था मुँह से बाहर

सारा का सारा भात ! और

टूट गया था आगे का आधा दांत,

होंठ हो गये थे चटख लाल !

देखकर यह दृश्य भर आयी थी

दीदी की आँखें !

उतर आया था आँखों में आघात !

जाने कितने वर्षों बाद या कहूँ

जीवन के ढलते वर्षों में

नसीब हुआ है बिना डर के

भर पेट खाने को भात,

तब वैद्य ने प्रेम से

समझाते हुए कहा-

जैसे कहते हों तात,

बिलकुल मत खाना भात !

यदि नहीं माने तो...

लगा जैसे आगे के शब्द कहेंगे,

लात से भी भारी पड़ेगा भात !

मन झुंझला कर बोला- हाय रे भात!

 

पवन तिवारी

२३/०१/२०२४  

   

चलो आज ऐसा किया जाये




चलो  आज   ऐसा   किया  जाये

ज़िन्दगी को फिर से जिया जाये

छल मिले, दुःख मिले हाय रोये भी थे

घोलकर इनको रस सा पिया जाये

ज़िन्दगी को फिर से जिया जाये

 

 

क्या से क्या हो गया देखते देखते

क्या से क्या हम हुए देखते देखते

लोग  गिरगिट हुए देखते – देखते

छोड़  ये  दृश्य  आगे   बढ़ा  जाये

ज़िन्दगी को  फिर से जिया जाये

 

 

कुछ नये लोग जोड़ें नयी राह लें

आस की टोकरी में नयी चाह लें

फिर से हम ज़िन्दगी की नयी थाह लें

कुछ नये अनुभवों से मिला जाये

ज़िन्दगी को फिर से जिया जाये


 

कैसे किसको बिगाड़ा नये तौर ने

कैसे बदला लिया अन्न के कौर ने

भूख  से  भी  मरे  इस नये दौर में

सोचो   कैसे    इसे   बदला   जाये

ज़िन्दगी को  फिर  से जिया जाये

 

पवन तिवारी

१९/०१/२०२४   

 

 

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

हमरे दिल के कचहरी में आ जइता हो




हमरे दिल के कचहरी में आ जइता हो

हमरे में  धीरे – धीरे  समा  जइता हो

 

तू  भटकला  दुआरे – दुआरे  जिया

तू  भटकला  किनारे - किनारे जिया

ऊब  के  तून भटकला  इनारे जिया

अब न भटका तू कउनो पियारे जिया

तोहरे नेहिया के नद्दी के हम समझी हो

हमारो प्यासल पिरितिया बुझा जइता हो

हमरे दिल के  कचहरी  में आ जइता हो

 

तोंहसे धोखा भइल हमसे धोखा भइल

नेह के  राहि  में  सगरो काँटा भइल

मनवा  रोवै  कहै  कहो  ई का भइल

सोच  सुंदर  रहै  पर  ई जुलुमैं भइल

हम तुहै भायी तू  हमका भा जइता हो

हमरे दिल के कचहरी में आ जइता हो

 

तू न लड़ि पइबा जालिम जमनवाँ से हो

आवा मिलि के लड़ल जा जहनवाँ से हो

आवा खुलि के मिला ना समनवाँ से हो

शायद जोड़ी लिखल  आसमानवाँ से हो

हमसे मिलि के जमनवा पे छा जाता हो

हमरे दिल के कचहरी  में आ जइता हो

 

पवन तिवारी

सम्पर्क- ७७१८०८०९७८

                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

 

 

      

रविवार, 14 जनवरी 2024

राम राम राम राम राम राम कहिये

सरयू तटे राज्य नगरम् अयोध्या

त्या  राज्य  राजे  रामं  नमामि !!

तेषां   नगरे   पुण्यं   फलीतम

त्या द्वारपाले  हनुमत  नमामि !!





राम राम राम राम राम राम कहिये

सीताराम सीताराम सीताराम गहिये

धर्म अर्थ काम मोक्ष राम में समाया

राम में सकल जग राम में ही रहिये

 

राम राम राम राम राम राम कहिये

सीताराम सीताराम सीताराम गहिये

 

राम  भगति  में  सरयू सा बहिये

अनाचार  अ’धर्म  कबहूँ न सहिये

राम  जगत के हैं एक ही खेवइया

हमें मात्र अवधनाथ राम जी ही चाहिए

 

राम राम राम राम राम राम कहिये

सीताराम सीताराम सीताराम गहिये

 

लखन लाल की जय जय कहिये

भरत  शत्रुघ्न  जय जय कहिये

द्वारपाल जय  हनुमत  कहिये

राघव राम की जय जय कहिये

 

राम राम राम राम राम राम कहिये

सीताराम सीताराम सीताराम गहिये

 

पवन तिवारी

१४/०१/२०२४

 

  

  

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

शहर में चौड़ी चिकनी सड़कें



शहर में चौड़ी चिकनी सड़कें

गाँव  में  कंकड़  ढेला  है.

गाँव उजड़ते बूढ़े रह गये

शहर में हर दिन मेला है


यह विस्थापन ठीक नहीं है.

बड़ा   बुरा    यह    रेला  है.

आओ  आयु  वेद को लौटें 

नहीं  ये   अच्छा   खेला  है 

 

किरकेट ने सब जगह घेर ली

गुल्ली  डंडा  गोल  हुआ

टैक्टर  ने  फैक्चर कर डाला

रोल बैल का गोल हुआ

 

भासा को अंग्रेजी खा गयी

विद्यालय   बस    ढोल   है

कान्वेंट  ही  उत्तम  शिक्षा

खतरनाक   यह  खोल  है.

 

फैशन ने संस्कृति को पटका

परिधानों संग झोल है

दूध दही माठा सब पिछड़े

शीतपेय   का  बोल है.

 

अन्न सभी जहरीले हो गये

वातावरण  प्रदूषित  है

नदी और तालाब का चेहरा

अंदर - बाहर दूषित है

 

यूँ ही यदि  विकास होना है.

बिन  विकास  हम अच्छे हैं

बड़े  हो गये आप लोग सब

मान   लिए   हम   बच्चे   हैं

 

ऐसी बुद्धि का क्या करना

जो   मौलिकता   नष्ट  करे

ऐसी युक्ति हमें न चाहिए 

जो  जीवन  को  भ्रष्ट  करें 

 

पवन तिवारी

१२/०१/२०२४