शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

दर्द लटके हैं कितने बाहों में



दर्द लटके हैं  कितने बाहों में

शेष पीडाएं सिसकी आहों में

छल का क़िस्सा तो सारा अपनों का

ग़ैर  आये   ही  नहीं  राहों में

 

जो मेरे नाम कि शपथ लेते

बातों – बातों  में दुहाई देते

आधे रस्ते में छोड़ वे भागे

वे भला नाव मेरी क्या खेते

 

ऐसे क़िस्सों से भरा जीवन है

घाव पीड़ा से भरा तन मन है

लोग कहते हैं जरा हँस भी दो

कैसे हँस दूँ कि अपना दुःख धन है

 

सारे सच्चों ने  मार खायी है

उनके हिस्से  में  बेवफाई है

लोग ठगते  हैं   वे ठगाते हैं

भाग्य सीधों ने ऐसी पायी है

 

पवन तिवारी  

 १४/१२/२०२४   

सोमवार, 4 दिसंबर 2023

इक दिन मिल गये कृष्ण मुरारी




इक दिन मिल गये कृष्ण मुरारी

बोले कंप्यूटर है भारी

सुनो! कहा- मैंने बनवारी

कितनों की नौकरी है मारी

 

ये मत कहना इसमें का बा

बहुत बड़ा है इसका ढाबा

बहुत तरह का ज्ञान है देता

इसमें बैठें गूगल बाबा

 

हँसकर बोले कृष्ण मुरारी

अबकी है इसकी ही बारी

इसकी इक छोटी अम्मा हैं

उनकी तीखी तेज कटारी

 

उनका नाम मोबाइल माई

उनकी ऐसी गज़ब ढिठाई

यौवन और बुढ़ापा बचपन

एक तरफ से सबको खाई

 

चौबीस घंटे नेट खाती है.

रिश्तों का जीवन खाती है .

रोता है जब समय बेचारा

धीरे से  हँसकर गाती है

 

इससे जो भी  बच पायेगा

वही जितेन्द्रिय कहलायेगा

,खा  जायेगी  संवादों को

जल्दी ही वो दिन आएगा

 

पवन तिवारी

०४/१२/२०२३

 

रविवार, 3 दिसंबर 2023

खेलो कूदो करो पढ़ाई


 

जैसे पढ़ने  से  मन  बनता

खेल – कूद से है तन बनता

दोनों को अच्छे से किया तो

अच्छा सा  जीवन बनता है

 

करो पढ़ाई का तुम मान

खेल कूद का भी सम्मान

मैरीकाम,सचिन को देखो

होता उनका भी गुणगान

 

खेलों - कूदो करो पढ़ाई

जीतोगे हर  एक लड़ाई

खेलों को जो गौण बताते

उनसे दूर रहो तुम भाई

 

पवन तिवारी

०३/१२/२०२३ 

सुबह – सुबह में दौड़ लगाओ



सुबह – सुबह में दौड़ लगाओ

सूरज  वाली  धूप भी खाओ

हँसी ख़ुशी  से  पढ़ने जाओ

मन कह दे तो गीत भी गाओ

 

गणित लगाओ पढ़ो कहानी

नल से पीओ छक के पानी

कविता भी पढ़ते रहना तुम

कविता की  प्रेमी  है नानी

 

मात - पिता को आदर देना

नानी से  तुम  शिक्षा लेना

भइया दीदी के संग मिलकर

बचपन की नइया को खेना

 

पवन तिवारी

०३/१२/२०२३      

जंगल में मानव आया है



जंगल में मानव आया है

देख के जंगल घबराया है

पहले देख के खुश होता था

अब जैसे दुश्मन आया है

 

पूछा  मोनू  ने चाचा से

जंगल  क्यों  घबराया है

चाचा  बोले  मोनू  बेटा

मानव जंगल को खाया है

 

आदम  खोर भेड़िये  होते

मानव जंगल खोर हो गया

और सरल  भाषा में बोलूँ

मानव जंगल चोर हो गया

 

जंगल से जीवन बनता है

प्राणवायु तन मन बनता है

मानव केवल स्वार्थ देखता

मानव पर्वत तक खनता है

 

पवन तिवारी

३/१२/२०२३

शनिवार, 30 सितंबर 2023

ये भरोसा आस्था कैसे बनेगा


ये   भरोसा   आस्था   कैसे  बनेगा

तुम शची सा पुण्यवत कोई बंध दोगे

प्रेम  कुछ   दुष्यंत  जैसे भी हुए हैं  

तुम भी क्या वैसा कोई प्रबंध दोगे

 

याकि नाते  के  किसी  नेपथ्य में तुम

जगत को दीखता सहज अनुबंध दोगे

साथ  में  मेरे  जो  ये  तुम कर रहे हो

इसका क्या कुछ नाम या संबंध दोगे

 

यह  प्रणय  का  पथ  रहेगा उत्तरोत्तर

या कि पथ में दुःख के रिसते रंध्र दोगे

आत्मा  का  प्रिय सदन ये ही बदन है

इतना सा क्या इस बदन की गंध दोगे

 

पवन तिवारी

०७/०७/२०२३  

पीड़ा में भी खड़े हैं



पीड़ा में  भी  खड़े हैं

साहस के बल अड़े हैं

एक हाथ कट गया है

एक  हाथ  से लड़े हैं

 

कुछ खा के यूँ पड़े हैं

ज्यों  पेड़ की जड़े हैं

विष  से  भरे हुए ये

सुवरण  से ये घड़े हैं

 

कहने को  जो बड़े हैं

कई उनके भी धड़े हैं

पिट्ठूगिरी  है  प्यारी

सच वाले  सड़ रहे हैं

 

प्रतिभा लड़ेगी  कब तक

अंतिम है साँस तब तक

कुछ मृत्यु कुछ विजय ले

आये  हैं  किंतु अब तक

 

पवन तिवारी

२०/०६/२०२३   

मर रहे हैं ज़िन्दगी को रख हथेली



मर रहे हैं ज़िन्दगी  को रख हथेली

मृत्यु को कहता  सरल कैसी पहेली

पर्वतों सा धैर्य पर पत्थर सा लगता

झोपड़ों में  रह  रहा  कहता  हवेली

लगता बड़बोला कभी तो दार्शनिक है

गीत खुशियों के हूँ सुनता गा रहा है

 

दर्द  है,  दीवार,  दरवाजा  खड़ा  है

लाश सी है ज़िन्दगी फिर भी अड़ा है

कहता अब भी साँस मेरी चल रही है

आस की  लाठी लिए अब भी पड़ा है

जब कोई  उससे  अँधेरी बात कहता

हँस के कहता सूर्य का रथ आ रहा है

 

लग  रहा  है  पेड़  टूटी  पत्तियों सा

बात करता खिड़कियों से साथियों सा

पूछो  तो  ऐसे  बताता  भीड़  में है

मुस्कराता  खंडहर  में  वादियों  सा

है बड़ा विक्षिप्त  या  अचरज कहूँ मैं

जो भी  आये  उसपे जैसे छा रहा है


कुछ तो कहते हो  चुका बर्बाद है वो

वो सदा हँस  के  कहे आबाद है वो

हो रही चुकने की उसके घोषणा जब

लेटे - लेटे  कह  रहा  नाबाद है वो

आने वाला कल  उसे अद्भुत कहेगा

जैसा भी हो  काल उसको भा रहा है

 

पवन तिवारी

२७/०९/२०२३ 

बुधवार, 31 मई 2023

जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य तुम्हारे



जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य तुम्हारे

मेरा जो भी प्रिय था हैं सब तुम पर हारे

अब भी अरुंधती सी दारायें होती हैं

देख तुम्हें उर बोला तुम भी धन्य हो प्यारे

 

कितनी है अनुरक्ति तुम्हें कैसे बतलाऊँ

प्रथम प्रात प्रतिवासर तुम्हरे दर्शन चाहूँ

पूर्ण वार इतने भर से ही सुखद रहेगा

अभिलाषा इससे अतिरिक्त नहीं कुछ पाऊं

 

प्रेमी हूँ ,कामांध नहीं, घोषणा करूँ क्या

प्रेम किसन हैं, राधा मीरा और कहूँ क्या

जिन्हें कशिश काया में लगती दूजे होंगे

मैं अंतः का अनुरागी हूँ हृदय धरुं क्या

 

दर्शन भर से भक्त तृप्त हो जाता है

इससे बड़ा  प्रेम  क्या  कोई पाता है

युगों-युगों तक लोग साधना जप तप करते

सहज व्यक्ति बस सीता राम ही गाता है

 

पवन तिवारी

३१/०५/२०२३      

 

तुम को देखा तो उठी मन में दुआ है

तुम को देखा तो उठी मन में दुआ है

प्रेम में अवगाहने का मन हुआ है

वे की महिमा या कि है कंदर्प की

दृष्टि में तुम और सावन ने छुआ है

 

अब्ज सी आभा लिए आनन हुआ है

जीने का जैसे  नया  साधन हुआ है

है अनोखा नवल अनुभव क्या कहूँ

सोचता हूँ  भाव  से  साजन हुआ है

 

रोम पुलकित रति मिला भेषज हुआ है

भूल सारा ज्ञान बस देसज हुआ है

धमनियों की गति बढ़ी सी लग रही है

उर का स्पंदन भी कुछ तेजस हुआ है

 

अब  तुम्हारा  जोहना भारी हुआ है

धैर्य मुझको शब्द ज्यों गारी हुआ है

प्रेम की आसक्ति अद्भुत शक्ति है

ये प्रतीक्षा का समय  आरी हुआ है

 

पवन तिवारी

२७/०५/२०२३