बुधवार, 31 मई 2023

जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य तुम्हारे



जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य तुम्हारे

मेरा जो भी प्रिय था हैं सब तुम पर हारे

अब भी अरुंधती सी दारायें होती हैं

देख तुम्हें उर बोला तुम भी धन्य हो प्यारे

 

कितनी है अनुरक्ति तुम्हें कैसे बतलाऊँ

प्रथम प्रात प्रतिवासर तुम्हरे दर्शन चाहूँ

पूर्ण वार इतने भर से ही सुखद रहेगा

अभिलाषा इससे अतिरिक्त नहीं कुछ पाऊं

 

प्रेमी हूँ ,कामांध नहीं, घोषणा करूँ क्या

प्रेम किसन हैं, राधा मीरा और कहूँ क्या

जिन्हें कशिश काया में लगती दूजे होंगे

मैं अंतः का अनुरागी हूँ हृदय धरुं क्या

 

दर्शन भर से भक्त तृप्त हो जाता है

इससे बड़ा  प्रेम  क्या  कोई पाता है

युगों-युगों तक लोग साधना जप तप करते

सहज व्यक्ति बस सीता राम ही गाता है

 

पवन तिवारी

३१/०५/२०२३      

 

तुम को देखा तो उठी मन में दुआ है

तुम को देखा तो उठी मन में दुआ है

प्रेम में अवगाहने का मन हुआ है

वे की महिमा या कि है कंदर्प की

दृष्टि में तुम और सावन ने छुआ है

 

अब्ज सी आभा लिए आनन हुआ है

जीने का जैसे  नया  साधन हुआ है

है अनोखा नवल अनुभव क्या कहूँ

सोचता हूँ  भाव  से  साजन हुआ है

 

रोम पुलकित रति मिला भेषज हुआ है

भूल सारा ज्ञान बस देसज हुआ है

धमनियों की गति बढ़ी सी लग रही है

उर का स्पंदन भी कुछ तेजस हुआ है

 

अब  तुम्हारा  जोहना भारी हुआ है

धैर्य मुझको शब्द ज्यों गारी हुआ है

प्रेम की आसक्ति अद्भुत शक्ति है

ये प्रतीक्षा का समय  आरी हुआ है

 

पवन तिवारी

२७/०५/२०२३

 

मिलना-बिछड़ना


 

कई बार लोग अकस्मात,

अकारण मिलते हैं!

और फिर मिलते हैं,

और मिलते ही रहते हैं |

और फिर...

एक दिन पता चलता है कि वे

जीने का कारण बन गये हैं !

और वो एक दिन...

जब फिर से बिछड़ने का होता है |

 

पवन तिवारी

२१/०५/२०२३

 

 

 

सोमवार, 22 मई 2023

सुनों, आज इस तरह



सुनों, आज इस तरह की

पहली और अंतिम बात

कहना चाहता हूँ.

अगर तुम अपने इस

व्यवहार में हमेशा के लिए

निरंतरता न रख सको तो

अभी सब कम कर दो,

ये जो तुम रोज फोन करती हो

ये जो तुम अक्सर मिलने आती हो

ये जो हमेशा मेरे पास बैठती हो

ये जो घंटो बतियाती हो

अचानक किसी दिन तुम

फोन करना कम कर दोगी

मिलना कम कर दोगी

मुझसे दूर बैठोगी और 

दो मिनट की बात करके कहोगी-

जरुरी काम है! और चली जाओगी !

पता है तब मुझे तब बहुत बुरा लगेगा

तुम्हें शायद नहीं पता बुरा लगना

कितना बुरा होता है.?

शायद मर जाना उतना बुरा नहीं होता

शायद इसलिए क्योंकि पिछली बार

मैं मरने से बच गया था.

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

      

 

प्यार में हाय



प्यार में हाय तुम तो ए क्या कर गये

आग  पर  मीठे  से ए अधर धर गये

 

ज़िन्दगी जीना वो भी तुम्हारे बिना

लगता मुमकिन नहीं क्या गज़ब कर गये

 

हममें तुमको कोई एक सी चीज है

दोनों ज़िंदा  रहे  शेष सब मर गये

 

छोड़े इसको जो रस्ता नया मिल गया

बेवकूफों को लगता  कि हम डर गये

 

इनकी छोड़ो इन्हें  रात आधी से क्या

जितने घर वाले थे सबके सब घर गये

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८