शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

तेरे द्वारे पे हम भी आये थे



तेरे  द्वारे  पे  हम  भी  आये  थे

तेरी खुशियों में जमके गाये थे

वक़्त ने मुझसे मुख था क्या मोड़ा

वर्षों खुद  को  अकेले पाए थे

 

गिरते उठते  थे  और चलते थे

अच्छे दिन याद करके खलते थे

ऐसा लगता था हजारों अपने

सोचते  और  हाथ  मलते  थे

 

सारी उम्मीद  रोके जाती रही

सफेदी तेज गति से आती रही

मुझको सब  भूलने ही वाले थे

तभी धुन मेरी कोई गाती रही

 

चर्चा  गीतों  की  मेरे  होने लगी

आगे-पीछे की पीढ़ी खोने लगी

पता चला कि उस पवन की है

एक बुढ़िया थी सुन के रोने लगी

 

माँ का बेटा  जो  लौट आया था

सबके अधरों पे वो ही छाया था

साधना  सिद्ध  हो गयी उसकी

सारे  जग  का  दुलार  पाया था

 

पवन तिवारी

११/१०/२०२२   

1 टिप्पणी:

  1. बहुत मार्मिक शब्द चित्र के प्रिय पवन जी। जिसमें एक व्यथा यात्रा है।गीत वहीं उमड़ते हैं जहाँ घनीभूत वेदना रहती है।यूँ ही लिखते रहिये।यूँ गीतों में व्यक्तिगत भावनाएं व्यक्त की जाती हैं पर उन्हें बाज़ार और विस्तार मिलता है तो ये जन-जन के अपने गीत बन जाते हैं।सस्नेह शुभकामनाएं।कामना है कि आपके गीतो को वैसा ही विस्तार मिले जैसा इनमें इंगित किया गया है।

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