मंगलवार, 12 जुलाई 2022

जितना खुद को समेटा

जितना खुद  को  समेटा बिखरा हूँ

अपनों को सबसे  ज्यादा अखरा हूँ

अब बिखरने पे  जो  आमादा हुआ

लोग  कहते  हैं  बहुत  निखरा  हूँ

 

टूटकर कितनी बार  फिर  से जुड़ा

कट  गये  पर,  था हौसले से उड़ा

लोग हर  बार  कहे  अबकी  गया

किन्त्तु हर बार  सही  पथ पे मुड़ा

 

रोते - रोते  भी  हँस  पड़ा  हूँ मैं

देख   अन्याय  लड़   पड़ा  हूँ  मैं

कितना नुकसान सहा हूँ ख़ुद का

किन्तु  सिद्धांत   पर  अड़ा  हूँ मैं

 

कहे  अख्खड़   तो  घमंडी   कोई

मुझको  समझे  थे  हूँ मंडी  कोई

एक अदने  ने  भरम  तोड़  दिया

ढोंग  की   खोला  है  कुंडी  कोई

 

पवन तिवारी

 

०५/१२/२०२१

(कल्याण  शाम ४ बजे नये मकान में प्रवेश के दिन )


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