बुधवार, 1 जून 2022

हरी हरी काई पर

हरी हरी  काई   पर  फिसले  हैं  पाँव

भीगा भीगा तन खोजे प्यारी सी ठाँव

नदिया  में  नाव  और  हरे   हरे  खेत

सबका है  अपना  ये नीला सा आँचल

 

कच्ची  दीवारों  पर  उग  आयी घास

पीपल  को  ऐसी  जगह  आये  रास

घूर  पर  कुकुरमुत्ते  करते   हैं  राज

कितने   अमोले  जमें   आस – पास

 

द्वा रे  की   माटी   कटी   जा  रही

बारिश  के   संग   बही   जा  रही

केचुओं    की   हो   गयी   भरमार

वर्षा  से   बछिया   डरी   जा  रही

 

बारिश  में   बच्चे  हैं   करते   छपाक

सर्दी  जुकाम  को   रख   देते   ताक

वृष्टि की महिमा बखान करें कितना

क्रोध में जो आये तो करती भी ख़ाक

 

पवन तिवारी

२२/०७/२०२१    

 

 

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