सोमवार, 30 मई 2022

प्रेम का नभ

प्रेम  का  नभ  नभ से विस्तृत  है

ये  सुधा  से  बढ़   कर  अमृत  है 

आज – कल    बहुरूपिये    आते

प्रेम   से   तो   स्वर्ग   झंकृत   है

 

प्रेम  से   ही   प्रकृति    पूरित  है

प्रेम की इच्छा न त्वरित चरित है

प्रेम दिख जाएगा  देखो ध्यान से

जिन्दगी   में   जितना   हरित है

 

प्रेम   से    ही    हर्ष   प्रेरित  है

प्रभु  का  भी  ये  मूल चरित है

प्रेम  से   वंचित  रहा   जो भी

थोड़ा सा  ही  किन्तु  क्षरित है

 

प्रेम  बिन  प्रति व्यक्ति झरित है

कंटकों    सा    वृक्ष   फरित  है

प्रेम  जब  तक   ज़िंदगी  में  है

उसका जीवन स्वच्छ सरित है

 

पवन तिवारी

१०/०७/२०२१

 

 

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