गुरुवार, 12 मई 2022

उसने ऐसी पीड़ा दी है

उसने   ऐसी   पीड़ा  दी  है

दिन दिन  बढ़ती  जाती  है

जितना  दूर  भागना  चाहूँ

 उतना   क़रीब    आती  है

 

रोम रोम से आह निकलती

उधर  बहुत  सुख  पाती है

मुझे दुखित देखना उसे बस

छल  से  जुल्म  वो ढाती है

 

मैं  रोता  तो  मुस्काती वो

ऊँचे   स्वर   में   गाती  है

मैं  कायर हूँ  दिखलाने को

कितनों को  ही बुलाती है

 

लक्ष्य से  कभी  नहीं है डिगती

थोड़ा – थोड़ा   रोज   मारती

प्रेम ही बस विश्वास किया था

सज़ा  मिली  है  रोज  बारती

 

प्रेम   करना  नहीं  कहूँ  मैं

प्रेम करो पर सजग भी रहना

बराबरी  का  रिश्ता  रखना

प्रेम में कभी न सब कुछ सहना

 

प्रेम का  घाव  बड़ा जहरीला

इसमें उर क्या मन जलता है

बदन के घाव तो हैं भर जाते

इसका  घाव  नहीं  भरता है

 

ना  होता  है   केवल  अमृत

प्रेम  में  बड़ा जहर होता है

अमृत  पीना हर  कोई चाहे

बिरला कोई  शिव होता है

 

 

पवन तिवारी

१३/०५/२०२१

 

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