सोमवार, 30 मई 2022

बाद वर्षों के कल

बाद  वर्षों  के  कल  मैंने  देखा  तुम्हें

मंच  से  ही  जरा  सा   परेखा  तुम्हें

मेरी कविता पे जब  तालियाँ गूँजती

थी रही  कोस मस्तक की रेखा तुम्हें

 

इतने दिन बाद जो दृष्टि  ने देखा कल

मंच से ही कहा हिय ने चल पास चल

मेरी कविता पे तब ही बजी तालियाँ

तुम्हरे आनन  पे उभरे  हुए स्वेद जल

 

तुम्हरे साथी के चेहरे पे मुस्कान थी

मेरी  कविता  भी छेड़े हुए तान थी

सारे श्रोताओं का मुझपे अनुराग था

एक  केवल  तुम्हीं  बस परेशान थी

 

प्रेम  को  छोड़कर  अर्थ  तुमने  चुना

छल का बारीक़ का जाल तुमने बुना

देख  तुमको  परेशां  है दुःख हो रहा

काश मेरी तरह होती दिल का सुना

 

पवन तिवारी

०७/०७/२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें