शुक्रवार, 27 मई 2022

जेठ की दोपहर सा जलाया मुझे

जेठ  की  दोपहर सा  जलाया  मुझे

प्रेम में इस  तरह  से  रुलाया  मुझे

प्रेम की चाह  रखना सहज भाव है

पूस  की  ठंड  जैसा   सताया  मुझे

 

तुमने ही सब से पहले बुलाया मुझे

मिलते ही  स्नेह तुमने जताया मुझे

तुमने ही मुस्करा के कहा था प्रिये

आप की हर अदा  ने लुभाया मुझे

 

मैं हूँ अब भी वही पर तुम्हें क्या हुआ

अपने इस प्रेम को क्या लगी बददुआ

हमने सम्मान सबका तुम्हारा किया

ऐसे  में  दर्द  ने  दिल को कैसे छुआ

 

ये जो तुम कर रही हो बुरा लग रहा

प्रेम ही प्रेम को  इस  तरह  ठग रहा

प्रेम  के   दर्द   से  कुछ रचूंगा  नया

मेरे अंदर का नन्हा सा कवि जग रहा

 

पवन तिवारी

०७/०७/२०२१

 

    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें