शुक्रवार, 27 मई 2022

जिन पे हमको

जिन पे हमको भरोसा कभी था नहीं

वो भरोसे से विश्वास  तक  लह  गये

जिन पे विश्वास आरम्भ से था किया

वे भरोसे के लायक  भी  ना रह गये

 

जिन  से  संपर्क  संवाद  तक था नहीं

मुझको जाने बिना जाने क्या कह गये

हम भी धुन के थे पक्के सो चुप ही रहे

साधनारत रहे  सारा  कुछ  सह  गये

 

अब जो थोड़ा सधा गंध  उड़ने  लगी

जो थे प्रतिकूल उनके भी मन ढह गये

सिद्ध होने में अब भी सफर लम्बा है

चाहने  वाले बस भाव  में  बह  गये

 

पवन तिवारी  

०३/०७/२०२१   

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