गुरुवार, 12 मई 2022

बिन मौसम बरसात

बिन मौसम बरसात  आ गयी

बिन  बातों  के बात  आ गयी

थोड़ा  सा  संवाद   बढ़ा  तो

विषय  में पहले  रात आ गयी

 

चर्चा  में बस अंधकार है

छाने को वह बेकरार है

जो प्रकाश जीवनदायी है

कुछ की खातिर बेकार है

स्वारथ का युग चढ़ गया ऐसा

ऐसी भी बिसात आ गयी

 

जो भी बुरा है आकर्षक है

बिलकुल की जैसे सर्कस है

जो सादा  है  अनदेखा  है

किन्तु बुरे की अभी कसक है

अच्छे की धकियाने वाली

पूरी एक जमात आ गयी

 

भीड़ का रेलम रेला है

सबसे बड़ा  झमेला है

भीड़ जुटाए बड़ भारी

इसी का ठेलम ठेला है

सच का मंडप खाली है

बाकी की बारात आ गयी

 

पवन तिवारी

१२/०५/२०२१  

 

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