बुधवार, 11 मई 2022

उदास उजड़ा ग्राम

उदास  उजड़ा  ग्राम  आ गया

स्वर  में  त्राहिमाम   गया

काम  है  रोता  शहरों में भी

बदनामों    नाम     गया

 

समय बड़ा विकराल आ गया

झुका हुआ सा  भाल आ गया

हँसते   चेहरे   रोने    से   हैं

धनिकों का भी काल आ गया

 

सम्बंधों   में  जाल     गया

जैसे  पिचका  गाल  आ गया

खुशियों पर ही ग्रहण लगा है

सामने खाली  थाल  आ गया

 

आखों में ज्यों बाल आ गया

संकट नहीं  बवाल आ गया

जितने भी  कमाल वाले थे

सब पर ही जवाल आ गया

 

प्रकृति का साथी काल आ गया

खींचने सबकी  खाल  आ गया

प्रकृति से क्षमा माँग लो कहता

हुए   ठोंकते   ताल     गया

 

जग  भर  में  भूचाल आ गया

कुछ  समझे थे  काल आ गया

सुधर गये  तो  बच सकते हो

काल का वरना लाल आ गया

 

पवन तिवारी

०६/०५/२०२१   

  

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