शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

रात धीमें से ढल रही होगी

रात  धीमें  से  ढल  रही  होगी

हवा भी  तेज  चल  रही  होगी

 

प्यार करती  है कह नहीं पाती

अपनी खुशियों को छल रही होगी

 

प्रेम में  छल  मिला  उसे जब से

बर्फ  सी  रोज  गल  रही  होगी

 

कचरे में आँख  खुली थी उसकी

दूब  के  जैसी  पल  रही  होगी

 

प्रेम का कोयला  मिला  जब से

धीमी धीमी सी जल रही होगी

 

पवन तिवारी

१२/०३/२०२१

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