सोमवार, 25 अप्रैल 2022

अम्बर में तो घिर आये थे

अम्बर में  तो  घिर  आये थे

हिय में भी बादल घिर आये

नैना  कब  से  बरस  रहे  थे

मेघा अब  बरसन  को आये

 

आग लगी है  सपनों में भी

हाय इन्हें अब कौन बुझाए

अभिलाषायें तड़प के जलती

हाय इन्हें अब कौन बचाए

 

अपनों ने भी आग लगायी

तभी तमाशा  देख  रहे हैं

मरुथल हो गये थे मेरे सुख से

अब मेरे दुःख से सींच रहे हैं

 

ना भाये चिड़ियों का कलरव 

भोर में भोर भी नहीं  सुहाये

जिस चांदनी को तरसा करता

उसे  देख   अब  मन  भुसुराये

 

सब कुछ मिल गया प्रेम मिला तो

 हम  थे  फूलों  नहीं  समाये

इसी  प्रेम  ने  लूट भी डाला

इतना दुःख कोई कैसे  गाये

 

मरना है  अंतिम पथ  केवल

पर उससे  पहले  लड़ना  है

दुःख को भी है मजा चखाना

अच्छे से  उसको  जड़ना  है 

 

पवन तिवारी

२१/०४/२०२१

 

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