शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

वो नज़ाकत समझ नहीं पाया

वो नज़ाकत  समझ  नहीं पाया

ज़रा सी  बात  सह  नहीं पाया

 

कर नहीं पाता कुछ भी आसाँ वो

धारा के  साथ  बह  नहीं पाता

 

उसकी सुन्दरता जान ले बैठी

फूल होकर  महक नहीं पाया

 

देखते – देखते   हुआ  उसका

तपाक बोला  रह नहीं पाया

 

गिरा भी तो वो अपनी शर्तों पर

यूँ ही   चुपचाप ढह  नहीं  पाया

 

पूरा घर ही  संभाले  रखता था

खुद पे आया सम्भल नहीं पाया

 

पवन तिवारी

१४/०३/२०२१

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