शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

वक्त झुकता जो

न रहे मेरे  ही  सपने  मेरे

वक्त हिलते लगे कटने मेरे

 

वक्त झुकता जो दिखा मेरी तरफ

ग़ैर  लगने  लगे  अपने  मेरे

 

ख़बर फैली जो उसके आने की

सपने भी लग  गये  जगने मेरे

 

उसे देखा तो कैनवास पे फिर

हाथ खुद ही  लगे  चलने मेरे

 

जब से गप मेरे मीठे लफ्जों को

आते कुछ लफ़्ज को चखने मेरे  

 

पवन तिवारी

११/०३/२०२१

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