मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

क़िताबें और तुम

पहले मैं क़िताबें पढ़ता था तो ,

कई बार समझ में नहीं आती थीं;

और फिर तुम मिली !

तुम में इतना कुछ था कि

तुम्हें ही पढ़ने लगा !

अब लगता है कि

दुनिया की सारी

ख़ूबसूरत क़िताबें  तुम में हैं !

कभी-कभी भाव आता है कि -

पूछूँ - यह क्या है ?

पुनः ध्यान आता है कि –

आज-कल किसी किताब को

पढ़ते समय समझने की

आवश्यकता नहीं पड़ती !

इसके साथ ही बरबस

अधर मुस्करा देते हैं और मैं,

किसी फूलों वाली दुनिया में

खो जाता हूँ .

 

पवन तिवारी

०५/०४/२०२१

 

 

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