सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

शीत लायी है सभी में नम्रता

शीत  लायी  है  सभी   में  नम्रता

काँटों  तक  में आ गयी  है आर्द्रता

शीत करती एक का  सम्मान बस

अग्नि रखती उसके ही सम पात्रता

 

कितनों की आवाज़ है दब सी गयी

कितनों की रफ्तार है थम सी गयी

वायु को पाले  में जब  से है किया

शीत की सत्ता  सनासन जम गयी

 

शीत ने है प्रेम  को आतुर किया

और लय को जैसे है नूपुर किया

प्रेमियों के दिन बहुरने लगते हैं

सूखे मन को खिलखिलाता उर किया

 

शीत  नंगे  पाँव  में  लगती बहुत

ये तो अगहन,पूस में जगती बहुत

फिर भी मुझको प्यारी लगती शीत है

ये भी गम कि बूढ़ों को ठगती बहुत

 

पवन तिवारी

२६/१२/२०२०  

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