गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

ज़िन्दगी और भी तो गाती है

ज़िन्दगी और  भी  तो  गाती है

कौन कहता कि  बस, सताती है

दुःख तो स्थायी साथी है उसका

किन्तु सुख को भी लेके आती है

 

यही जो दुःख में  गुनगुनाती है

रोती  खुद  ग़ैर  को  हँसाती है

लोग  यूँ  ही  नहीं मरते  इसपे

ख़ुशी में भी  गज़ब  रुलाती है

 

ज़िन्दगी के  लिए मरते  कितने

ज़िन्दगी के  लिए गिरते कितने

ज़िन्दगी को कहे जग जाने क्या

ज़िन्दगी  पा के निखरते कितने

 

क्या कहूँ तुझको लाजवाब है तू

नहीं  हिसाब   बेहिसाब  है  तू

तेरे बिन  शून्य  है  जगत सारा

प्रकृति का  श्रेष्ठतम जवाब है तू

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

१६/१२/२०२०

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