मंगलवार, 18 जनवरी 2022

साँसों की घरघराहट

 


 

सबको लगती है भूख ,

प्यास सबको लगती है ,

दुःख सबका है;

घाव लगने पर

पीड़ा सबको होती है !

प्रेम सब चाहते हैं .

प्रशंसा सबको अच्छी लगती है.

अपमान कोई नहीं चाहता !

सबको ख़ुशी चाहिए.

और बहुत कुछ

समानता है सब में,

इन सबके बावजूद

अलग है बहुत कुछ ;

सोचता हूँ कभी घूमूँ,

जहाँ तक घूम सकूँ और

महसूस कर सकूँ

अलग-अलग समय खण्ड की

साँसों को और

मिला कर देख सकूँ

अपनी साँसों की घरघराहट !

मेरा भ्रम बना रहे या टूटे ,

बस ! चाहता हूँ.

इसका उत्तर नहीं है  शायद अभी;

इस क्षण तक मेरे पास !

 

 

पवन तिवारी

संवाद : ७७१८०८०९७८

१०/१०/२०२०

 

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