शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

कोई गरज रहा कोई बरस रहा

कोई गरज रहा कोई बरस रहा

कोई भीग के भी है तरस रहा

हर सर की मति है अलग-अलग

कोई सब खोकर  भी हरस रहा

 

कोई पानी में भी प्यासा है

गूँगे की  भी  तो  भाषा है

कुछ सब कुछ पाकर हारे हैं

कुछ सब खोये पर आशा है

 

सबकी  अपनी  मर्यादा  है

कोई कम तो कोई ज्यादा है

कुछ अजब गजब बहुतेरे भी

कोई खुद के लिए भी बाधा है

 

कोई एकदम सीदा - सादा है

कोई कृष्ण सा है पर राधा है

कोई  दायित्वों  से  भागे  है

कोई खुद से ज्यादे लादा है

 

सो फेर में जग के पड़ो नहीं

हाँ,बात - बात पर अड़ो नहीं

बातों  से  भी  बातें  बनती

हाँ,बात - बात पर लड़ो नहीं

 

ज्यादा  मनमानी  करो नहीं

पर बात - बात पर डरो नहीं

व्यवहारिक जीवन को समझो

तुम कान को ज्यादा भरो नहीं

 

सबकी सुनना  हिय की करना

घर  गैर का  भी  थोड़ा भरना

दुःख हो  तो  भी  मुस्का लेना

जीवन  में  झरने  सा  झरना


पवन तिवारी

१०/०९/२०२०  

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