शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

ये रूप की माया कैसी है

ये रूप  की  माया  कैसी है

सुध - बुध खो देने जैसी है

इसका तिलस्म सबसे भारी

रति   जैसी   है, ये  वैसी  है

 

चितवन ऐसी मन डोल गया

चुप्पा भी आख़िर बोल गया

नैंनों का बाण लगा कुछ यूँ

वो मन की गठरी खोल गया

 

ज्यादा है बदन का आकर्षण

कुछ अदाओं का गुरुत्वाकर्षण

उसमें एक  प्रेम  का आगर है

उसका  अति  आकर्षण  घर्षण

 

उसमें  अंतिम  सम्वाद  कला

उसमें भी फँसा तो गया छला

इसका  महात्म्य  सच में  अद्भुत

कोई पा के जला कोई देख जला

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

07/08/2020  

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