शुक्रवार, 15 मई 2020

चुपचाप और अप्रत्याशित


जीवन में जाने कितना कुछ
चुपचाप और अप्रत्याशित
आता है, छा जाता है.
जीवन के बंद द्वार कितने
कुछ समय में ही है दिखलाता ;
कुछ बनी बनाई राहों को
चुटकी में ध्वस्त कर जाता है.
हमसे ही कुछ नई-नई वह
पगडंडी बनवाता है.
कुछ नयी खिड़कियाँ खुलवाता,
कुछ दीवारें तुड़वाता है.
कुछ इधर उधर करवाने में
जीवन ज्यादा ले जाता है.
चुपचाप और अप्रत्याशित से
डिगना न ज़रा भी घबराना ;
इनसे मिलना सम्मान सहित
पर अपना भी आदर रखना !
फिर जीवन खर्च तभी होगा,
जब जितना जैसे चाहोगे.
खुशियाँ दुःख जो भी आयेगा,
तुम सहज उसे अपनाओगे.



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
 

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