सोमवार, 13 अप्रैल 2020

खुशियाँ मिली जब भी


खुशियाँ मिली जब भी दोस्तों का साथ  था
मगर आगे  बढ़ने में  दुश्मनों का हाथ था
वे पग - पग पे  झूठ कहे  और छल किये
जिनके  सम्मान  का मैं माथा व नाथ था

चार  साथी  विपति  में परखिये कहे गये
धीरज  धरम  व मित्र  तीन तो सहे गये
किन्तु  एक  नारी  ने घाव ऐसा दे दिया
गंगा  में  जीवित  ही  शव  से बहे गये

किसी से भी प्रेम स्वयं से अधिक करो नहीं
दूसरे का भार भी निज माथे धरो  नहीं
हिय जो कहे सच्चा चुपचाप कर  जाओ
कौन क्या  कह  रहा उससे  डरो  नहीं

अर्थ के तले चरित्र और  भाव  घुट रहा
छल-कपट, धूर्त जहाँ  अर्थ वहाँ जुट रहा
अनाचार ना  सही  व्यवहारिक हो जाओ
जो जितना नैतिक है उतना वो लुट रहा



पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com     


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